कारे कारे छाये बदरा

आसमान में काले काले मेघ छाये हैं, मानसून ने वसुंधरा पर अपना एक छत्र राज्य स्थापित किया है पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण चारों दिशाओं में रह रहकर बदलियां अपनी सखियों के साथ अठखेलियाँ कर रहीं हैं दूर दूर तक फैले काले मेघ अपनी धवल रोशनी से मन मोह रहे हैं धरती पर हरियल मनुहार की मोहनी अपनी ओर आकर्षित कर रही है। पुरवाई में शीतलता घुल गई है। वृक्षों की टहनियाँ इतराने लगीं हैं हरी घास के तृणों में जवानी का नशा है। पथ के दोनों ओर हरी घास कदम ताल कर रहीं पेड़ों की फुनगियां गलबैंया डालने को बैचेन हैं, खेतों खलिहान में बहार ही बहार है। खेतों का राजा कृषक धरती की पुलक देख स्वयं पुलकित हो रहा है अब धरती की गोद में बीज के दाने डाले जायेंगे। जो हमारी जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ लायेंगे।

हमारे पशु पक्षी सभी उल्लास मय हैं जहाँ विहगवृंद का कलरव मस्ती में अपनी अलग छवि से हमें उल्लासित कर रहा है वही मन का मयूर आकाश की तरंगों में खोकर अपनी आभा बिखेरता सा प्रतीत हो रहा है। मौसम के मेहंदी की खुश्बू श्रृंगार के सोपान चढ़ रही है । वातावरण में एक चुहलता है लगता है कि हम इसमें इतने खो जायें कि अपनी सुध न रहे।

बूंद बूंद झरती तो ऐसा लगता है कि पायल के शोरे खनक रहे हैं । पत्तों से सरकती तो धरती की बाहों में समाती जाती धीमी धीमी सरसराहट से लगता कि कहीं कोई छिपा है पर ये तो वारिश का अपना मिज़ाज है। खनिज गंधों की गमक से लगता कि गरमाहट के खेल अब खतम हुए। पानी के रेले ऐसे जैसे सड़क भागकर दूर निकली जा रही है। मन के कोरों में बहती एक सजल नदिया नेह के कलश पूजती है पथ के पनघट पोखर लहराने लगे हैं। ताल तलैया हर्षित हैं। क्षितिज की अटारी से दामिनी चहकती है यह वारिश जीवन अलौकिक आनंद हैं। प्रेम मय जीवन के नवीकरण का प्रतीक सजल धरा का आत्म निवेदन है जल वर्षा।

– राजेन्द्र मिश्रा जबलपुर म प्र

Back to top button