
जबलपुर। संस्कारधानी में संस्कार कांवड़ यात्रा 21 जुलाई को सुबह 7 बजे सिद्धघाट, गौरीघाट से प्रारंभ होगी। यह यात्रा शहर के विभिन्न मार्गों से होते हुए कैलाशधाम खमरिया में समाप्त होगी। यह जानकारी संस्कार कांवड़ यात्रा के संयोजक शिव यादव और अध्यक्ष नीलेश रावल ने दी। कांवड़ यात्रा का यह 15 वां वर्ष है।
विश्व प्रसिद्ध संस्कार कावड़ यात्रा
श्रावण का द्वितीय सोमवार 21 जुलाई मप्र की संस्कारधानी में शिवाराधना का सबसे बड़ा दिन है क्योंकि इस दिन अपने अनूठे परिवेश में दादागुरु के सानिध्य औऱ मार्गदर्शन में संस्कार कांवड़ यात्रा निकलेगी।
गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज विश्व की एकमात्र प्रकृति संरक्षण की जीवंत अभिव्यक्ति संस्कार कावड़ यात्रा जिसे दादागुरु ने नाम दिया है “रन फ़ॉर नेचर”, जिसमें लाखों कावड़िए शिव आराधना के साथ प्रकृति संरक्षण के लिए निकलते हैं।
अनूठी है यह यात्रा
संस्कार कांवड़ यात्रा के संयोजक शिव यादव का कहना है कि यह यात्रा अनूठी इसलिए है क्योंकि इससे दादागुरु के प्रकृति संरक्षण सम्वर्धन के विचार को मौलिक रूप प्रदान हुआ है।
इस महायात्रा के साथ देववृक्ष के रूप में दादागुरु का महाविचार भी चलता है। यही विचार हमारे सुखद भविष्य का आधार भी है। दादागुरु ने समाज को प्रकृति से सहज सन्धि करवाने के लिए हमारे अनेकों पर्व परम्पराओं को सीधा प्रकृति से जोड़ा है। कावड़ यात्रा उन्हीं में से एक है।
दादा गुरु का संदेश
दादागुरु ने अपने सन्देश में कहा है कि कावड़ माता-पिता के प्रति प्रेम श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है। जिस तरह त्रेता युग में श्रवण कुमार अपने माता पिता को कावड़ में लेकर गंगास्नान के लिये निकले थे उसी तर्ज पर कावड़िए कावड़ में एक तरफ माँ स्वरूप जगतनन्दी माँ नर्मदा का अमृतरूपी जल और दूसरी तरफ पितृ स्वरूप महादेव के सगुण स्वरूप देववृक्ष को स्थापित कर शिव उपासना के लिए निकलते हैं।
दादागुरु के आदर्श चिंतन को आत्मसात कर संस्कार यात्रा के लाखों कावड़िए एकता, एकाग्रता, समता औऱ शुचिता के साथ सौहाद्रपूर्ण वातावरण बनाए रखते हुए ग्वारी घाट से जल व देववृक्ष को कावड़ में रखते हैं फिर 35 किमी पदयात्रा कर शिव अभिषेक के लिए कैलाशधाम तक जाते हैं।
श्रावण में श्रवण कुमार की तर्ज पर कावड़िए जगतकल्याणि माँ नर्मदा, भगवान भोलेनाथ की सगुण उपासना के साथ प्रेम, सेवा, एकता, सद्भाव के सन्देश का आदर्श स्थापित करते हुए शिव अभिषेक करते हैं। तत्पश्चात संरक्षण के संकल्प के साथ देववृक्षों की स्थापना करते हैं। यह एक आदर्श पहल है।
यह यात्रा राष्ट्र-धर्म
- संस्कृति-प्रकृति के प्रति पूर्ण समर्पित महाअभियान है।
- यह यात्रा सगुण उपासना, सेवा का महायोग है।
- यह यात्रा धर्म धरा, संस्कृति व प्रकृति बचाने की मुहिम है।
- यह यात्रा महायज्ञ है सम्पूर्ण सृष्टि के प्रति, राष्ट्र के प्रति, धर्म के प्रति, हमारे पूर्ण समर्पण का जो समतुल्य है सहस्त्र कोटि यज्ञ के।
महाअभियान का सुखद परिणाम
इस महायज्ञ, महाअभियान, महायोग के सुखद परिणाम सम्पूर्ण नर्मदा पट्टी में अनन्त स्थानों पर बड़े-बड़े वृक्षों के रूप में लहलहा रहे हैं।
कभी संस्कारधानी में बंजर कही जाने वाली ड्राई पहाड़ी आज हरे-भरे सघन वृक्षों से आच्छादित होकर मेघों को आमंत्रण दे रही है। जो असम्भव जान पड़ता था वो भी संकल्प की सिद्धि से पूर्ण हुआ।