
जबलपुर। मध्यप्रदेश पावर ट्रांसमिशन कंपनी (एमपी ट्रांसको) संकट से गुजर रही है। भविष्य में यह संकट और गहराने वाला है क्योंकि जिन तकनीकी कर्मियों ने ट्रांसको में प्रशिक्षण लिया, वे जॉब छोड़कर दूसरी कम्पनी ज्वॉइन कर रहे हैं क्योंकि उनको वहां अच्छा वेतन मिलने की आस है। यहां ट्रांसको ने प्रशिक्षण में करोड़ों रुपए खर्च कर दिए और उनका स्टाफ रिक्त होता जा रहा है। विद्युत वितरण कंपनियों में हालिया नियुक्तियों के बाद ट्रांसको के लगभग 100से अधिक कर्मचारी अपनी सेवाएं छोड़ने को तैयार बैठे हैं। इनमें जूनियर इंजीनियर, लाइन स्टाफ से लेकर आईटी विशेषज्ञ तक शामिल हैं।
करोड़ों खर्च नतीजा सिफर
कंपनी ने तकनीकी कर्मियों को प्रशिक्षण देने में करोड़ों रुपये खर्च किए और कई वर्षों का समय दिया। इसके बाद ये कर्मचारी बेहतर और नियमित नौकरी की चाह में दूसरी कंपनियों का रुख कर रहे हैं। इससे ट्रांसमिशन प्रणाली की कार्यक्षमता पर गहरा असर पड़ रहा है।
35 जे ई कंपनी छोडने की तैयारी में
सूत्रों के अनुसार, ट्रांसको के करीब 35 जूनियर इंजीनियर हाल ही में विभिन्न वितरण कंपनियों में चयनित हुए हैं। जो संविदा आधार पर कार्यरत थे। इनके स्थान पर तुरंत प्रतिस्थापन न होने की स्थिति में ग्राउंड लेवल पर कार्यों में बाधा आने की आशंका है।
लाइन स्टाफ को भी अन्य कंपनी पसंद
कंपनी के एक्स्ट्रा हाई टेंशन सबस्टेशनों में कार्यरत 37 से अधिक प्रशिक्षित लाइन स्टाफ भी दूसरी कंपनियों में शामिल होने की प्रक्रिया में हैं। ट्रांसमिशन लाइन के रखरखाव में देशभर में पहचान बना चुके ये स्टाफ सिस्टम की रीढ़ माने जाते थे। इन कर्मचारियों की विशेष तकनीकी ट्रेनिंग पर लाखों रुपये खर्च किए गए थे।
ईआरपी प्रणाली पर भी खतरे के बादल
आईटी विभाग की हालत भी चिंताजनक होती जा रही है। अब तक ई आर पी प्रणाली संभालने वाले चार से अधिक टेक्निकल स्टाफ इस्तीफा दे चुके हैं। मालूम हो कि ट्रांसको देश की उन अग्रणी कंपनियों में है, जिन्होंने इस सिस्टम को लागू किया था। लेकिन अब इस प्रणाली के संचालन में बाधा आने की संभावना प्रबल हो गई है।
फैक्ट फाइल
क्षेत्र -सबस्टेशन मेंटेनेंस- स्टॉफ
भोपाल – 15 -16
जबलपुर – 12 -9
ग्वालियर – 8 -18
इंदौर – 11 -19
ये है संविदा कर्मियों का दर्द
जानकारी के अनुसार, एमपी ट्रांसको में अधिकांश तकनीकी स्टाफ संविदा पर कार्यरत है, जिन्हें सेवा शर्तों में असमानता, वार्षिक वेतन वृद्धि में भेदभाव,पदोन्नति की कमी और भविष्य की अनिश्चितता जैसी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। दूसरी ओर, केंद्रीय कंपनियां और निजी पॉवर सेक्टर संस्थान नियमित नियुक्ति, आकर्षक वेतन और सेवा स्थायित्व के साथ बेहतर विकल्प पेश कर रहे हैं।
समाधान की अपेक्षा
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ट्रांसको प्रबंधन समय रहते स्थायी भर्ती प्रक्रिया शुरू नहीं करता, तो आने वाले समय में ट्रांसमिशन व्यवस्था पूरी तरह चरमरा सकती है। यह न केवल बिजली आपूर्ति को प्रभावित करेगा, बल्कि प्रदेश की औद्योगिक और आर्थिक गतिविधियों पर भी प्रतिकूल असर डालेगा।
यह कंपनी का नुकसान है
हमारी कंपनी में जिन संविदा कर्मचारियों को प्रशिक्षण देकर प्रशिक्षित किया गया था, उनमें से अनेक को नियमित नियुक्ति मिलने पर वे छोड़कर जा रहे हैं। यह हमारी कंपनी के लिए बहुत बड़ा नुकसान है।
सुनील तिवारी, एमडी, एमपी ट्रांसको