
पहलगाम। 1964 में बनी फिल्म ‘कश्मीर की कली’ से चर्चा में आई कश्मीर के पहलगाम की बैसरन घाटी पिछले 10 वर्षों से पर्यटकों की पहली पसंद बनी हुई है। यहां सालभर पर्यटकों की आवाजाही होती है। हालांकि पिछले दिनों हुए आतंकी हमले के बाद से पर्यटकों व स्थानीय लोगों में दहशत है। सुरक्षा की दृष्टि से इसके बाद से कुछ ट्रैकिंग रूट बंद कर दिए गए हैं।
पर्यटन स्थल के रूप में तेजी से उभरी घाटी
कश्मीर की गोद में बसी बैसरन घाटी हाल के वर्षों में एक नए पर्यटन स्थल के रूप में तेजी से उभरी है। अनछुई वादियों और शांत वातावरण से भरपूर यह घाटी अब उन पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है जो मुख्यधारा के भीड़भाड़ वाले पर्यटन स्थलों से अलग कुछ तलाशते हैं। इसे “मिनी स्विट्ज़रलैंड” भी कहा जाता है। यह उपमा इसके प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर पूरी तरह सटीक लगती है।
ट्रैवल ब्लागर्स और वीडियोग्राफरों ने साझा की यहां की खूबसूरती
बैसरन घाटी करीब 10 साल से पर्यटकों के बीच पहचान बनाने लगी। इस दौरान कुछ ट्रैवल ब्लॉगर्स और वीडियोग्राफर्स ने इसकी खूबसूरती को डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर साझा किया। इसके पहले यह घाटी मुख्य रूप से चरवाहों और स्थानीय ग्रामीणों के लिए ही जानी जाती थी।
सालभर अलग-अलग रंगों में नजर आती है घाटी
बैसरन घाटी समुद्र तल से लगभग आठ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां के हरे-भरे चरागाह, बर्फ से ढके पहाड़, रंग-बिरंगे जंगली फूल, और बादलों से ढंकी घाटियां किसी परी कथा जैसे दृश्य प्रस्तुत करती हैं। यह जगह साल भर अलग-अलग रंगों में नजर आती है। गर्मी में हरियाली, सर्दियों में बर्फबारी और वसंत में फूलों की बहार इसे हर मौसम में खास बनाती है।
यहां से पीर पंजाल की पहाड़ियों का नज़ारा मंत्रमुग्ध कर देने वाला होता है। बैसरन के खुले मैदानों में कैंपिंग और पिकनिक का अनुभव अविस्मरणीय रहता है।
घोड़े या खच्चर की सवारी उपलब्ध
घाटी तक पहुंचने के लिए सीमित ट्रेकिंग रूट हैं और कुछ स्थानीय ऑपरेटर घोड़े या खच्चर की सवारी उपलब्ध कराते हैं। कुछ जगहों पर कैंपिंग साइट्स, स्थानीय भोजनालय और सीमित गाइड सेवाएं उपलब्ध हैं। इसके अलावा कुछ होमस्टे विकल्प भी अब बनने लगे हैं जो स्थानीय जीवनशैली का अनुभव देते हैं।
असुविधा और चुनौतियां भी
खूबसूरत वादियों तक पहुंचने में पर्यटकों को कुछ असुविधा और चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है। पक्की सड़क की कमी के कारण बरसात या बर्फबारी में पहुंचना मुश्किल हो जाता है। मोबाइल नेटवर्क लगभग नहीं के बराबर है। इससे आपातकालीन स्थिति में संपर्क करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। प्राथमिक चिकित्सा या स्वास्थ्य सेवाएं भी मौजूद नहीं हैं।