
सीधी। सीधी जिले के रामपुर नैकिन विकासखंड के खड्डी बगैहा टोला की कच्ची सड़क को लेकर सोशल मीडिया पर छिड़ा विवाद अब राजनीतिक गलियारों तक पहुंच गया है। गांव की रहने वाली बघेली यूट्यूबर लीला साहू ने हाल ही में सोशल मीडिया के जरिए सांसद और प्रशासन से अपने गांव की 10 किलोमीटर लंबी जर्जर सड़क बनाने की गुहार लगाई। इस अपील का वीडियो वायरल होने के बाद भाजपा सांसद डॉ. राजेश मिश्रा ने अपनी प्रतिक्रिया दी है।
लीला साहू ने सोशल मीडिया पर साझा किए वीडियो में बताया कि बरसात के मौसम में यह कच्ची सड़क दलदल में बदल जाती है, जिससे मरीजों खासकर गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुंचाना बेहद मुश्किल हो जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि वह खुद नौ माह की गर्भवती हैं और सड़क की इस हालत के कारण उनकी चिंता और बढ़ गई है। लीला साहू पिछले एक साल से अपने गांव के लिए पक्की सड़क की मांग कर रही हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी तक से इस मुद्दे पर मदद की गुहार लगा चुकी हैं।

इस बार उनके वीडियो के जवाब में भाजपा सांसद डॉ. राजेश मिश्रा ने कहा कि सड़क निर्माण की अपनी प्रक्रिया होती है। उन्होंने लीला साहू को सलाह दी कि हर गर्भवती महिला की डिलीवरी की संभावित तारीख तय होती है और ऐसे मामलों में सरकार समय रहते भर्ती कराने की पूरी व्यवस्था कर सकती है। उन्होंने कहा कि अगर वे चाहें तो पहले से अस्पताल में भर्ती हो जाएं, सरकार भोजन-पानी समेत सभी सुविधाएं मुहैया कराएगी। सांसद ने यह भी जोड़ा कि सरकार मरीजों को एंबुलेंस, यहां तक कि जरूरत पड़ने पर हवाई जहाज से भी इलाज के लिए ले जाने में सक्षम है।
सांसद ने सड़क निर्माण की प्रक्रिया पर बात करते हुए कहा कि कोई भी सड़क सांसद नहीं बनाता बल्कि इंजीनियर बनाते हैं। सर्वे से लेकर डीपीआर, बजट, निविदा और निर्माण तक यह एक लंबी प्रक्रिया होती है। उन्होंने कहा कि वह खुद उस सड़क की स्थिति से अवगत हैं और अधिकारियों से बातचीत चल रही है।
गौरतलब है कि मझौली और रामपुर नैकिन तहसील को जोड़ने वाली यह सड़क 30 से ज्यादा गांवों के लिए जीवनरेखा मानी जाती है। लेकिन बरसात के मौसम में यह दलदल में तब्दील हो जाती है। लीला साहू ने पहले भी इस मुद्दे को सोशल मीडिया पर उठाकर प्रधानमंत्री तक को टैग किया था, लेकिन सड़क की हालत अब तक जस की तस बनी हुई है।
ग्रामीणों का कहना है कि सड़क बन जाने से 30 गांवों के हजारों लोगों को राहत मिलेगी। फिलहाल यह विवाद सोशल मीडिया से निकलकर राजनीतिक बहस का मुद्दा बन चुका है और ग्रामीणों को उम्मीद है कि अब उनकी आवाज और ज्यादा जोर से सुनी जाएगी।