
राजीव उपाध्याय
लंगड़े घोड़े को लंगड़ा भले ही समझा जाता है लेकिन राजनीति करने में वे बहुत पॉवरफुल होते हैं। वे खुद तो कुछ करते नहीं लेकिन रेस के घोड़ों को भी अस्तबल से बाहर नहीं निकलने देते, वे जानते हैं कि उनकी पूंछपरख तभी तक है जब तक कि रेस के घोड़े सामने नहीं आते। जिस दिन रेस के घोड़े सामने आ गए लंगड़े घोड़ों को आराम करने की हिदायत दे दी जाएगी। कांग्रेस में राहुल गांधी का इशारा भी इसी तरफ है। उनके कहे शब्द लंगड़े घोड़े, शादी के घोड़े, रेस के घोड़े हवा में तैरते हुए उन तक पहुंच रहे हैं जिन्हें इसके मायने समझ लेना चाहिए।
मठाधीशों की गहरी पैठ
कांग्रेस में मठाधीशों की गहरी पैठ है। राजनीति की जरा सी भी समझ रखने वाला कांग्रेस के नेताओं, पदाधिकारियों के नाम सुनकर बता सकता है कि इनकी हाजिरी कहां लगती है, ये किसके दरबार में जाते हैं। निष्ठा ऐसी कि आका यदि रास्ता बदलने का विचार करें तो यह पल भर भी पार्टी के बारे में नहीं सोचते। कांग्रेस में मठाधीशों के नाम पार्टी से ऊपर हो गए हैं। इनके साथ इनके फॉलोअर्स हैं।
क्या बैचेनी नहीं होती
सत्ता से दूर कांग्रेस में क्या सत्ता में आने की बैचेनी नहीं होती। जवाब है, बहुत होती है, लेकिन चुनाव के वक्त बड़े नेता ऐसा क्या करते हैं कि वे चुनाव नहीं जितवा पाते। उम्मीदवारों के चयन में भी पक्षपात के आरोप बरसों से लगते आ रहे हैं। उन पर दांव लगाया जाता है जो कभी दौड़े ही नहीं। शायद राहुल गांधी शादी के घोड़ों को रेस में दौड़ाने की बात इसी संदर्भ में कह रहे थे।
कार्यकर्ताओं में उत्साह
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के भोपाल में कांग्रेस नेताओं, पदाधिकारियों, विधायकों, सांसदों, कार्यकर्ताओं के बीच दिए भाषण से कार्यकर्ताओं में उत्साह है। उनको लग रहा है कि अब कांग्रेस को संजीवनी बूटी मिल गई है। अब वह फिर से तंदुरुस्त हो जाएगी। जो गुटबाजी में फंसे कांग्रेस नेता, कार्यकर्ता हैं वे भी एक दूसरे से आंखों आंखों में इशारा कर रहे हैं कि अभी हवा का रुख देखो। कहीं ऐसी आंधी न चल जाए कि सब “कांग्रेस के हो जाएं, गुट छोड़कर”।
क्या लगाम लगेगी
लगाम लगाने का प्रयास ही कांग्रेस का “संगठन सृजन” प्लान है। राहुल गांधी के मापदंड इस प्लान के तहत बहुत कड़े हैं। जिन राज्यों में बीजेपी की सरकार कई दशकों से हैं जैसे मध्यप्रदेश, गुजरात जैसे अन्य राज्य, वहां इसका प्रयोग पहले किया जाएगा। इसके लिए डिस्ट्रिक्ट प्रेसिडेंट को “सुपरमैन” बनाया जाएगा। डिस्ट्रिक्ट प्रेसिडेंट के सिलेक्शन के लिए एआईसीसी से आब्जर्वर आयेंगे वे करीब 6 दिन जिले में रहकर कार्यकर्ताओं से चर्चा करेंगे, वरिष्ठों से चर्चा करेंगे, जो कैंडिडेट्स है उससे चर्चा करेंगे।
यहां पीसीसी के पदाधिकारियों को भी ऑब्जर्व करने में शामिल किया गया है ये आसपास के जिलों के ही होते हैं, और सभी जिलों में अपना प्रभाव रखते हैं। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के मन में यह सवाल उठ रहा है कि इस पूरी प्रक्रिया में इनका झुकाव कहीं किसी के प्रति परिलक्षित तो नहीं होगा। यदि एआईसीसी के सदस्य सेपरेट रिपोर्ट बनाते हैं तो क्रास चेकिंग की जा सकती है। नए डिस्ट्रिक्ट प्रेसिडेंट जोकि पूरे पॉवर से लैस होंगे वे कांग्रेस के अंदर अपना वजूद कितना सिद्ध कर पाते हैं, पुराने ढर्रे पर कितनी लगाम लगा पाते हैं यह तो भविष्य में वक्त के दायरे में है।