
जबलपुर। नर्मदा के तट पर बसे जबलपुर को मप्र की संस्कारधानी कहा जाता है। यह शहर ऐतिहासिक और प्रशासनिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहां से कलकल बहती नर्मदा नदी जिसे श्रध्दा से नर्मदा मैया कहते हैं। यह केवल प्राकृतिक धरोहर नहीं बल्कि धार्मिक विश्वास और परंपराओं की जीवन धारा है।
पुराणों में उल्लेख
इतिहास की दृष्टि से देखें तो नर्मदा नदी का उल्लेख पुराण, रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में भी मिलता है। कहा जाता है कि यह नदी भगवान शिव के आशीर्वाद से प्रकट हुई है। इसे शिव की पुत्री के रूप में पूजा जाता है।
आस्था के साथ पर्यटन भी
भेड़ाघाट की संगमरमरी चट्टानों के बीच से बहती नर्मदा की दुधिया धारा और प्राकतिक जलप्रपात को धुंआधार नाम दिया है। इस जलप्रपात को देखने सैकड़ों पर्यटक भी रोजाना भेड़ाघाट आते हैं। प्रयागराज कुंभ के दौरान यहां पर्यटकों की संख्या हजारों में रही।
भेड़ाघाट के अलावा गौरीघाट, तिलवारा घाट, लम्हेटा घाट जैसे स्थल हजारों वर्षों से साधकों ऋषियों और संतों की तपस्थली हैं। यहां रोजाना सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचकर पूजन अर्चन करते हैं। गौरीघाट और तिलवारा घाट में रोजाना संध्या आरती श्रद्धा का केंद्र बनी हुई है।
दर्शन मात्र से पापों का होता है नाश
मान्यताओं के अनुसार नर्मदा के दर्शन मात्र से ही पापों का नाश हो जाता है। दीपों की कतारें मंत्रोच्चारण और भक्तों की आराधना का दृश्य अत्यंत दिव्य होता है।
एक मात्र नदी जिसकी होती है परिक्रमा
परंपराओं की बात करें तो नर्मदा परिक्रमा एक महत्वपूर्ण धार्मिक यात्रा है, जिसमें श्रद्धालु अमरकंटक से नर्मदा के दोनों किनारों की पैदल परिक्रमा करते हैं। जबलपुर इस परिक्रमा का एक प्रमुख पड़ाव है। जहां तीर्थयात्री कुछ दिन रुककर पूजन और तप करते हैं।
अनेक आयोजन में जुटते हैं हजारों श्रद्धालु
हर साल मकर संक्रांति, महाशिवरात्रि और विशेष रूप से नर्मदा प्राकट्योत्सव के अवसर पर जबलपुर में लाखों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। इन अवसरों पर घाटों की सजावट भजन कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रम शहर को धार्मिक ऊर्जा से भर देते हैं।