
जबलपुर। जबलपुर के कई प्राचीन स्थल अपनी सुंदरता, भव्यता और ऐतिहासिकता के लिए पहचाने जाते हैं लेकिन कुछ ऐसे स्थल भी हैं जहां व्यक्ति सालभर जाना पसंद करता है। ये स्थल इतने आकर्षित हैं कि लोग इनसे दूर नहीं हो पाते। हम आपको बताते हैं वह स्थल जहां लोग हर मौसम का आनंद लेने इन स्थलों पर पहुंचते हैं…।
तेवर: राजा कर्ण से जुड़ा है इतिहास
जबलपुर से 15 किलोमीटर दूर भेड़ाघाट रोड पर मां त्रिपुर सुंदरी का भव्य और प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर राजा कर्ण की कुलदेवी का है, जहां राजा कर्ण पूजन कर लोगों को सोना दान में दिया करते थे। किवदंती है कि राजा कर्ण जितना दान करते थे मां त्रिपुर सुंदरी उन्हें उतना ही सोना दे दिया करती थीं। इस क्षेत्र को हथियागढ़ के नाम से भी जाना जाता है, जहां आज भी खुदाई में लोगों को सोना, चांदी और अन्य वस्तुओं की प्राप्ति होती है। हालांकि इधर प्रशासन ने किसी भी प्रकार की खुदाई में रोक लगा रखी है। यहां त्रिपुर सुंदरी माता मां महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में विराजमान हैं। यहां नवरात्र के अलावा अन्य दिनों में भी भक्तों का आना लगा रहता है। खास बात यह है कि यहां मनोकामना के लिए लोग चुनरी और नारियल बांधते हैं। जब मनोकामना पूरी होती है तो उसके बाद मां त्रिपुर सुंदरी का श्रृंगार कर अनुष्ठान किया जाता है और भंडारा का प्रसाद वितरित कर खुशी मनाई जाती है। यह क्रम यहां 12 महीने देखने में मिलता है। यहां शहर के अलावा आसपास के जिलों के भी लोग विशेष रूप से पूजन करने के लिए पहुंचते हैं।
मदन महल: किला से रखते थे दुश्मनों पर नजर
इतिहास के पन्नों पर यह उल्लेख है कि यह किला गोंड राजा मदन शाह ने बनवाया था। किला की मुंडेर से सैनिक दुश्मनों पर नजर रखते थे। इसे सुरक्षा चौकी के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि इससे लगातार दूर-दूर तक दुश्मनों पर नजर रखी जाती थी। किला परिसर में छोटे छोटे कमरे भी बने हैं और घुड़साल भी है। देखने में यह प्रतीत होता है कि यहां सैनिकों की आवाजाही लगी रहती थी और किसी भी विषम परिस्थिति के दौरान यहां से सैनिक लड़ाई और युद्ध के लिए तैयार रहते थे। जिस तरह से किला का निर्माण किया गया है उसे देखने पर लगता है कि यहां राजा आराम करने के लिए भी पहुंचते रहते थे। मदन महल किला से गुफा भी निकलती है जो विशेष परिस्थितियों में आने-जाने के लिए राजा इसका उपयोग किया करते थे। यह किला पुरातत्व विभाग की देखरेख में है। खास बात यह है कि यहां हर मौसम में लोग पहुंचते हैं। यहां से शहर का शानदार नजारा देखने में मिलता है।
बड़ी खेरमाई: राजा संग्राम शाह ने बनवाया था मंदिर
बड़ी खेरमाई मंदिर के बारे में बताया जाता है कि एक बार गोंड राजा मदनशाह मुगल सेनाओं से परास्त होकर यहां खेरमाई मां की शिला के पास बैठ गए। तब पूजा के बाद उनमें नया शक्ति संचार हुआ और राजा ने मुगल सेना पर आक्रमण कर उन्हें परास्त किया। 500 वर्ष पूर्व गोंड राजा संग्रामशाह ने मढिय़ा की स्थापना कराई थी। पहले के समय में गांव-खेड़ा की भाषा प्रचलित थी। पूरा क्षेत्र गांव की तरह था। खेड़ा से इसका नाम धीरे-धीरे खेरमाई प्रचलित हो गया। शहर अब महानगर हो गया है लेकिन आज भी मां खेरमाई का ग्राम देवी के रूप में पूजन किया जाता है। यहां नवरात्र के अलावा भी लोग 12 महीने पहुंचते हैं। शहर में कई परिवार इसे कुलदेवी के रूप में पूजते हैं और परिवार में किसी भी शुभ कार्य के पूर्व पूजन करने पहुंचते हैं। मंदिर को अब ट्रस्ट ने भव्य रूप प्रदान किया है।