
जबलपुर। वैदिक ज्योतिष के अनुसार समय-समय पर सूर्य और चंद्र ग्रहण पड़ते हैं जिनका प्रभाव मानव जीवन और समूचे विश्व पर देखा जाता है। इस वर्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा के दिन रविवार, 7 सितंबर 2025 की रात को खग्रास चंद्रग्रहण लगने जा रहा है। यह ग्रहण भारत समेत यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, अफ्रीका और उत्तर-दक्षिण अमेरिका के पूर्वी क्षेत्रों में दृश्य होगा।
ग्रहों की विचित्र स्थिति
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुविद् पंडित सौरभ दुबे के अनुसार इस बार ग्रहण के दौरान विचित्र संयोग बन रहे हैं। राहु और चंद्रमा की युति कुंभ राशि में रहेगी जबकि सूर्य और केतु की युति कन्या राशि में होगी। दोनों ग्रह समूह समसप्तक भाव में एक-दूसरे को देखेंगे। इस कारण ग्रहण योग बनेगा।
उन्होंने बताया कि सूर्य-केतु और राहु-चंद्रमा की युति से डबल ग्रहण योग बन रहा है, जिससे देश-दुनिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। प्राकृतिक आपदाएं, विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में भारी बारिश और भूकंप जैसी घटनाएं संभव हैं। इसके अलावा राजनीति और भूगोल में बड़े बदलाव और मौसम की प्रतिकूलता देखने को मिलेगी।
ग्रहण का असर राशियों पर
इस चंद्रग्रहण का प्रभाव सभी राशियों पर होगा।
- नकारात्मक असर: कर्क, वृश्चिक, कुंभ, मीन, मिथुन और सिंह राशि वालों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
- सकारात्मक असर: धनु, तुला, कन्या, वृषभ, मेष और मकर राशि वालों के लिए यह ग्रहण शुभ फलदायी रहेगा।
ग्रहण का समय और सूतक
पंडित सौरभ दुबे ने बताया कि यह खग्रास चंद्रग्रहण रविवार 7 सितंबर 2025 को पूर्वाभाद्र नक्षत्र, कुंभ राशि में होगा।
- ग्रहण का स्पर्श: रात 9:57 बजे
- मध्यकाल: रात 11:40 बजे
- मोक्ष: रात 1:26 बजे
सूतक काल दिन में 12:57 बजे से प्रारंभ होगा। बालक, वृद्ध और रोगियों के लिए सूतक शाम 6:37 बजे से मानना चाहिए।
ग्रहण काल में सावधानियां
- गर्भवती महिलाएं धारदार वस्तुओं जैसे कैंची, चाकू या सुई का उपयोग न करें।
- ग्रहण को नग्न आंखों से न देखें।
- सूतक काल में भोजन पकाना और खाना वर्जित है।
- इस समय बाल कटवाना, नाखून काटना और दाढ़ी बनाना वर्जित है।
- ग्रहण काल में भगवान का नाम जपें। “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” या “महामृत्युंजय मंत्र” का जाप विशेष फलदायी है।
- धार्मिक कृत्य जैसे दान, जप, हवन, श्राद्ध करना शुभ माना जाता है।
अनंत चतुर्दशी और विसर्जन
इस वर्ष 6 सितंबर को अनंत चतुर्दशी है जबकि 7 सितंबर को पूर्णिमा तिथि और ग्रहण का सूतक प्रारंभ होगा। पंडित दुबे के अनुसार, गणेश प्रतिमा का विसर्जन अनंत चतुर्दशी (6 सितंबर) को ही कर देना उचित होगा ताकि ग्रहण काल में प्रतिमा पंडालों में न रहे और हमारी आस्था पर कोई आक्षेप न लगे।