कांग्रेस का सच -बिना सपोर्ट नहीं मिलता पद, राहुल कर रहे “सपोर्ट” को कांग्रेस से “डिपोर्ट”

AICC पर्यवेक्षक के सामने मुखर हुए कांग्रेसी

राजीव उपाध्याय

बड़े दरख़्त की छांव में कोई दूसरा पेड़ पनप नहीं सकता। राजनीति में कुछ हद तक उल्टा है यहां बड़े दरख़्त ही तय करते हैं कि किस पेड़ को फलने फूलने की आजादी देना है और किस हद तक देना है। जो उनकी छांव में आता है वही फलता फूलता है। कांग्रेस में यह बरसों से चला आ रहा है। यहां पिरामिड सिस्टम है, जिसमें एक के ऊपर एक बड़े नेता हैं जिनके अपने अपने ग्रुप हैं। यहां पद मिलने की क्वालीफिकेशन यह है कि आप किसके हो, किसके लिए हो।यहां कांग्रेस के लिए कौन है, यह सवाल बाद में आता है।

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इतिहास गवाह है जो नेता संगठन में पद पर है वह किसी न किसी के सपोर्ट के कारण उस पद पर है। विरले ही होंगे जो यह कह सकेंगे कि मैं अपनी दम पर आगे बढ़ा। सांसद राहुल गांधी कांग्रेस की इस “सपोर्ट” परम्परा को कांग्रेस से “डिपोर्ट” करने की मंशा रखते हैं। संगठन सृजन अभियान ही ऐसा टूल है जिससे उन्हें लगता है कि यह परम्परा टूट जाएगी और एक मजबूत डिस्ट्रिक्ट प्रेसिडेंट बनेगा जो संगठन को मजबूत करेगा। क्या यह संभव है, क्योंकि यहां बड़े दरख़्तों की जड़ें मजबूत हैं।

जबलपुर में संगठन सृजन की बैठक के दौरान संबोधित करते विधायक लखन घनघोरिया।

सच पर बरपा हंगामा

जबलपुर में पूर्व क्षेत्र के विधायक लखन घनघोरिया ने वो सच कहा जो पर्दे के पीछे था तो हंगामा हो गया। यह बात तो सभी जानते हैं कि आज जो जहां है वह किसके सपोर्ट से है। पूर्व क्षेत्र के विधायक लखन घनघोरिया ने यदि पूर्व शहर अध्यक्ष दिनेश यादव को शहर अध्यक्ष बनाने में सपोर्ट किया तो वह बात सार्वजनिक रूप से कह दी।

बात यहीं नहीं रुकती उन्होंने सबका सपोर्ट सिस्टम भी उजागर कर दिया। वह भी यूं ही नहीं हुआ जब शहर के अन्य कुछ कांग्रेस नेताओं ने यह कह दिया कि शहर में सब कुछ विधायक लखन घनघोरिया ही कंट्रोल कर रहे हैं उनकी मर्जी से ही अध्यक्ष बनाए जा रहे हैं। तब पूर्व क्षेत्र के विधायक लखन घनघोरिया ने बता दिया कि उन्होंने किसको अध्यक्ष बनाया।

उन्होंने बता दिया कि वर्तमान महापौर जगत बहादुर सिंह अन्नू जो पहले कांग्रेस में थे अब बीजेपी में हैं उन्हें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वा राज्य सभा सांसद विवेक तन्खा वा जबलपुर पश्चिम क्षेत्र के पूर्व विधायक तरुण भनोत ने अध्यक्ष बनने सपोर्ट किया था। वर्तमान अध्यक्ष सौरभ शर्मा के मामले में उन्होंने अपनी दूरी बना ली और उनका अध्यक्ष बनना पार्टी का निर्णय बताया। यह सच ऐसा नहीं है कि खुद कांग्रेसी न जानते हों, सभी जानते हैं फिर इतना हंगामा क्यों बरपा जा रहा है।

इसका कारण यह है कि एआईसीसी पर्यवेक्षक के सामने सब शहर की हकीकत बयान करना चाहते थे। वे बंद कमरों में कहते इससे पहले लखन घनघोरिया ने खुले मंच अपना ही नहीं सबकी हकीकत बयान कर दी। एआईसीसी पर्यवेक्षक गुरदीप सिंह सप्पल के लिए भी यह सब नया नहीं होगा क्योंकि वे भी जानते हैं कि कांग्रेस ऐसी ही चलती आ रही है।

बिना “सपोर्ट” के नहीं बनेगा अध्यक्ष

संगठन सृजन के तहत नए अध्यक्ष की तलाश की जा रही है। उसे बहुत अधिक शक्तियां दी जाएंगी लेकिन क्या बिना सपोर्ट के कोई अध्यक्ष बन सकेगा। पूर्व शहर अध्यक्ष दिनेश यादव का कहना है कि आज भी नया अध्यक्ष किसी न किसी के सपोर्ट से ही बनेगा। उन्होंने खुद स्वीकार किया कि लखन घनघोरिया ने उनको सपोर्ट किया तब वे शहर अध्यक्ष बन सके। प्रदेश और दिल्ली की राजनीति में भी उनको बड़े नेताओं का सपोर्ट मिलता रहा है।

“सपोर्ट” क्या हो सकेगा”डिपोर्ट”

“सपोर्ट” शब्द या इसकी राजनीति क्या कांग्रेस से “डिपोर्ट” हो सकेगी। कांग्रेस नेताओं के अंदर तो यही धारणा है कि बिना किसी वजनदार नेता के सपोर्ट से कार्यकर्ताओं की राजनीति नहीं चलती। कांग्रेस में यह भी सच है। सांसद राहुल गांधी की मंशा है कि संगठन का सृजन हो। यानि “सपोर्ट” शब्द को कांग्रेस से “डिपोर्ट” किया जाए। यह ऐसा शब्द है जिसने कांग्रेस की जड़ों को खोखला कर दिया। इसके दरख़्त बड़े हो गए हैं, कांग्रेस छोटी हो गई है।

राहुल गांधी इस पिरामिड को तोड़ना चाहते हैं जिसमें ऊपर से सब कंट्रोल हो रहा है। लेकिन हकीकत यह है कि जो अध्यक्ष बनेगा उसे किसी का सपोर्ट मिला तब तो वह उसका ही होकर रहेगा। एआइसीसी पर्यवेक्षक में इतना दमखम यदि है कि वे समंदर से मोती निकाल सकें तो कुछ हद तक कांग्रेस के सिस्टम में सुधार हो सकता है।

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