
राजीव उपाध्याय
भारत में दो भारत बसते हैं एक शहरी व दूसरा ग्रामीण। सरकारें आती हैं जाती हैं लेकिन आम जनता की मामूली इच्छा कि उसके गांव में सड़क, बिजली, पानी, स्कूल हो यह भी पूरी नहीं कर पातीं। जब माननीयों से ग्रामीण गुहार लगाते हैं कि आप हमारे जनप्रतिनिधि हैं आपको वोट देकर जिताया है, आप सड़क बनवा दीजिए ताकि गर्भवती महिलाओं को परेशानी न हो। लेकिन यह सुनना भी माननीय पसंद नहीं कर रहे हैं वे शब्दों की ऐसी जलेबी परोस रहे हैं कि जिसके कोई मायने नहीं।
सिस्टम और प्रक्रिया का पाठ
वे सड़क बनाने का पूरा सरकारी सिस्टम समझा रहे हैं। वे यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि इतना आसान नहीं है सड़क बनाना, उसकी प्रक्रिया होती है। वे तो अब यहां तक कह रहे हैं कि सरकार इतनी संवेदनशील है कि यदि माननीय को खबर कर देंगे कि गर्भवती को अस्पताल लेकर जाना है तो वे घर से उठवाकर अस्पताल तक भिजवा देंगे। यदि इतनी सजगता है तो गर्भवती महिलाएं परेशान क्यों हैं।
दर्द में गर्भवती महिलाएं
गर्भवती महिला जो दर्द झेलती है वह प्रसव के बाद उसका पुनर्जन्म कहलाता है। इस दर्द के दौरान उसे मानसिक रूप से उस दर्द को झेलने भी तैयार रहना पड़ रहा है कि अस्पताल जाते वक्त कच्चे रास्तों से गुजरना पड़ेगा। हो सकता है कि रास्ते में कीचड़ हो, रास्ते में उफनता हुआ नाला हो। कोई एम्बुलेंस भी घर तक न पहुंचे तब भी अस्पताल तो जाना ही होगा। इसके लिए कितनी भी परेशानी क्यों न हो क्योंकि गर्भ में पल रहे शिशु को इस संसार में लाना है।
जरा यहां एक नजर डालें
सीधी में एक यूट्यूबर लीला साहू ने अपने गांव के कच्ची सड़क का वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किया। उसने दिखाया कि कच्ची सड़क बारिश में दलदल में बदल जाती है। गर्भवती महिलाओं को अस्पताल तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। इस वीडियो में 8 गर्भवती महिलाएं गांव में सड़क की मांग कर रही थीं। लीला साहू पिछले एक साल से पक्की सड़क की मांग कर रही है लेकिन कुछ नहीं हुआ।
माननीयों की प्रतिक्रिया
वीडियो को देखकर सांसद राजेश मिश्रा तिलमिलाए और उन्होंने सरकार के द्वारा गर्भवती महिलाओं को अस्पतालों में दी जाने वाली सारी सुविधाओं के बारे में जानकारी दे दी। यहां तक कि सरकार के पास इतनी सुविधा है कि वह एंबुलेंस से लेकर एयर एंबुलेंस तक से अस्पताल पहुंचाने की सुविधा दे रही है। लेकिन माननीय से जब केवल इतनी गुजारिश की गई कि वे महज एक सड़क बनवा दें तो ग्रामीण गर्भवती महिलाओं के साथ ही सभी के लिए आसानी हो जाएगी। इस बात पर तो माननीय ने सड़क बनाने की पूरी प्रक्रिया समझा दी। अंत में नतीजा सिफर।
नरसिंहपुर का उदाहरण
एक अन्य केस नरसिंहपुर जिले का है। यहां की ग्राम पंचायत कुम्हड़ी में एक गर्भवती महिला आरती मलाह को प्रसव पीड़ा होने पर उसे परिजन के साथ उफनते नाले को पैदल पार करके उस पार खड़ी 108 एम्बुलेंस तक जाना पड़ा। वहां बारिश में रपटा के ऊपर से पानी गुजरता है जिससे उस ग्रामीणों को उस पार जाने में जान जोखिम में डालना पड़ता है।
शासन-प्रशासन की अनदेखी
शासन प्रशासन का ध्यान नहीं है कि ऐसी व्यवस्था की जाए कि ग्रामीणों के लिए आवागमन आसान हो जाए। खासतौर से गर्भवती महिलाओं के लिए। इस स्थिति में माननीय सांसद, विधायकों की शब्दों की जलेबी ग्रामीण केवल याद कर लेते हैं कि उनके लिए तो एयर एंबुलेंस उपलब्ध है केवल उनको खबर ही तो करना है लेकिन यहां तो साधारण एंबुलेंस भी उनके घर तक नहीं पहुंच पा रही है।
सड़क होगी तो गड्ढे भी होंगे
गांव में सड़क की मांग तो शहर में गड्ढों में से सड़क को देखने की मांग। आम जनता का दिल ही नहीं भरता, कुछ न कुछ मांग करके माननीयों को परेशान करती ही रहती है। अब सड़क कभी न कभी तो थी उसमें कुछ गड्ढे भी जनता को बर्दाश्त नहीं। जनता को इतनी भी तकनीक की समझ नहीं कि जब सड़क होती है तो गड्ढे तो उसके हमसाया हैं वह भी साथ ही रहेंगे।
सवाल सकारात्मक देखने का है, जनता गड्ढों के बीच सड़क को नहीं बल्कि गड्ढों को देख रही है। माननीय ने अच्छे से जनता को टेक्नोलॉजी समझा दी कि सड़कें होंगी तो गड्ढे भी होंगे। इसका मतलब यह नहीं कि गड्ढे होना चाहिए लेकिन सड़क चार पांच साल पुरानी हो गई और ट्रैफिक लोड रहता है तो गड्ढे हो जाते हैं। यह तकनीक आम जनता को समझ नहीं आई।
वे दिखाने लगे कि 25 साल पुरानी मॉडल रोड में तो गड्ढे नहीं है जोकि जबलपुर में ब्लूम चौक से तीन पत्ती तक बनी है। ठीक है कुछ एक सड़क में अपवाद हो सकती हैं इसके मायने यह तो नहीं कि माननीय का कथन गलत हो। वे तो गड्ढों की हकीकत बयां कर रहे थे कि किस तरह सड़कों के हाल हैं।
हकीकत यह है
हकीकत यह है कि गांवों में प्रधानमंत्री सड़क योजना के अंतर्गत निश्चित रूप से गांवों को सड़क से जोड़ा है। लेकिन अभी भी बहुत काम बाकी है। जनता के द्वारा समय समय पर सोशल मीडिया पर वीडियो जो दिखाए जा रहे हैं वे भी हकीकत बयां कर रहे हैं। सरकार की योजनाएं अच्छी होने के बाद भी अफसरशाही और ढीले सरकारी सिस्टम के कारण उसके क्रियान्वयन में इतनी देरी होती है कि जनता परेशान हो जाती है और वीडियो वायरल करके उसे अपने गांव की दशा माननीयों तक पहुंचाना पड़ रहा है।
सोशल मीडिया तेज गति से आगे बढ़ रहा है जिसमें हर हकीकत पर्दे के बाहर आ ही जाती है। माननीय केवल शब्दों में उलझाकर कुछ समय तक इसे उलझा सकते हैं लेकिन जनता भी जागरूक है।