
जबलपुर। श्रावणी पूर्णिमा का पर्व धार्मिक उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया गया। इस दिन जहां भाई-बहन एक-दूसरे की रक्षा के संकल्प के रूप में रक्षाबंधन का पर्व मनाते हैं, वहीं वैदिक परंपरा में वेदपाठी ब्राह्मण “श्रावणी उपाकर्म” के माध्यम से वेद पूजन और यज्ञोपवीत परिवर्तन की विधि सम्पन्न करते हैं।
सुबह से ही नर्मदा तट पर श्रद्धालु और विप्र समुदाय के लोग एकत्र हुए। वैदिक विधि-विधान के अनुसार विप्रजनों ने पवित्र नर्मदा नदी में डुबकी लगाकर स्नान किया और यज्ञोपवीत (जनेऊ) का परिमार्जन कर नया यज्ञोपवीत धारण किया। यह प्रक्रिया वैदिक जीवन में पवित्रता और अनुशासन का प्रतीक मानी जाती है।
शहर में विभिन्न धार्मिक और सामाजिक संगठनों की ओर से इस अवसर पर अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किए गए। इसी क्रम में श्रीरामचन्द्र वेद वेदांग संस्कृत विद्यापीठ, गीताधाम में श्रावणी उपाकर्म और वेद पूजन का आयोजन विशेष रूप से किया गया। कार्यक्रम में वेदपाठी छात्रों और विद्वानों ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ यज्ञ, हवन और वेद पूजन सम्पन्न किया।
इस अवसर पर श्रीमद् जगतगुरु नरसिंह पीठाधीश्वर डॉ. स्वामी नरसिंह देवाचार्य जी महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं और विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा—
“संस्कृत संभाषण, वैदिक मंत्रोच्चार, वेद, शास्त्र और धर्मग्रंथों के पठन-पाठन तथा उच्चारण में वर्ष भर जो त्रुटियाँ अनजाने में हो जाती हैं, उनके परिमार्जन और आत्मशुद्धि के लिए श्रावणी उपाकर्म अत्यंत आवश्यक है। यह एक आध्यात्मिक अनुशासन है जो वैदिक परंपरा को जीवंत रखता है।”
कार्यक्रम में प्राचार्य आचार्य रामफल शास्त्री, हिमांशु मिश्रा, जितेन्द्र तिवारी और प्रियांशु मिश्रा ने वैदिक विद्यार्थियों को श्रावणी उपाकर्म की संपूर्ण विधि कराई। वैदिक ऋचाओं के मधुर उच्चारण से वातावरण पूर्णतः आध्यात्मिक और पवित्र हो गया।
नर्मदा तट पर और गीताधाम परिसर में पूरे दिन भक्तिभाव और वैदिक आभा का अद्भुत संगम देखने को मिला। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक रहा, बल्कि वैदिक संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन का भी सशक्त संदेश देता है।