ऐसे तो बन जाएंगे फर्जी डॉक्टर, “मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम” के लिए डॉ ब्रजराज उर्फ सत्येंद्र का केस चैलेंज!

राजीव उपाध्याय
जबलपुर। सत्येंद्र फर्जीवाड़ा करके बन जाता है ब्रजराज सिंह उइके और एमबीबीएस की डिग्री लेकर बन जाता है डॉ ब्रजराज सिंह उइके। यह मेडिकल कॉलेजों के लिए प्रवेश परीक्षा लेने वाली संस्था के लिए भी बड़ा चैलेंज है। इस तरह के केस के लिए संस्था को दस्तावेजों की स्कूटनी करना बड़ा चैलेंज बन जाता है। हो सकता है इस तरह का पहला मामला सामने आया हो, जिसका खुलासा हुआ है लेकिन चर्चा यह भी है कि ऐसे अन्य मामले भी हो सकते हैं जो सामने न आए हों। मालूम हो कि सत्येंद्र उर्फ डॉ ब्रजराज सिंह उइके ने वर्ष 2018 में एमबीबीएस की डिग्री ली। यानि उसने एईपीएमटी एग्जाम पास किया होगा। जिसमें एग्जाम के वक्त दस्तावेजों के वेरिफिकेशन में यह घपला पकड़ा नहीं गया। वर्ष 2013 से नीट यूजी ने एईपीएमटी की जगह ले ली।
स्कूटनी में भी नहीं पकड़ा गया
एग्जाम में 10th की मार्कशीट को आधार माना जाता है। यह जांच का विषय है कि ओरिजनल ब्रजराज सिंह उइके की 10th की मार्कशीट में उसकी फोटो थी कि नहीं। क्योंकि इससे ही सत्येंद्र ने फायदा उठाया होगा। अभी तो सीबीएसई 10th की मार्कशीट में कैंडिडेट्स की फोटो दे रहा है। वह भी स्कैन करके लगी रहती है। यदि ब्रजराज सिंह उइके की मार्कशीट में उसकी फोटो स्कैन थी तो सत्येंद्र ने उसकी जगह अपनी फोटो किस तरह से स्कैन करके लगा ली। यदि नहीं लगाई तो उसके फोटो वाली मार्कशीट के साथ वह तो एग्जाम सेंटर में नहीं। जा सकता। यह जांच का विषय है। हो सकता है कि सीबीएसई अभी फोटो के साथ मार्कशीट जारी करने लगा है पहले कैंडिडेट्स की फोटो के बिना मार्कशीट जारी करता था। तब भी मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम कंडक्ट करने वाली संस्था के लिए बड़ा चैलेंज है कि वह इस तरह के फर्जीवाड़े को किस तरह पकड़े।
मेडिकल कॉलेज में भी वेरिफिकेशन
पहले एआईपीएमटी अब नीट के एग्जाम के बाद मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के वक्त भी दस्तावेजों का वेरिफिकेशन होता है। वहां भी इसे नहीं देखा गया।मध्य प्रदेश में जब 2008-2009 में मेडिकल कॉलेजों में मुन्नाभाई के प्रकरण उजागर हुए थे तब वो मामला अलग था उसमें एग्जाम के वक्त दूसरा कैंडिडेट्स बैठा था। जिससे वे मुन्नाभाई पकड़े गए और इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई थी। लेकिन यह केस अलग है। इसमें सत्येंद्र ने अपनी आइडेंटिटी ही बदल ली और इसका इस्तेमाल भी कर लिया और वह किसी स्टेप पर पकड़ा नहीं गया।
इस तरह उजागर हुआ मामला
जबलपुर निवासी मनोज कुमार की मां शांति देवी को किसी बीमारी के कारण मार्बल सिटी हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। जहां 2 सितंबर 2024 को उनकी मृत्यु हो गई। उनके बेटे मनोज कुमार ने जब हॉस्पिटल से मिले कागजों की पड़ताल की तो उसमें उनको डॉ ब्रजराज उइके का नाम मिला, जिनकी देखरेख में आईसीयू में उनकी मां का इलाज हो रहा था। मनोज डॉ ब्रजराज उइके से मिलना चाहता था लेकिन हॉस्पिटल मैनेजमेंट टालमटोल करता रहा। उनका रवैया मनोज को संदिग्ध लगा तो मनोज ने डॉ ब्रजराज सिंह उइके की पड़ताल की। मनोज ने इंटरनेट से जब जानकारी ली तो एक रजिस्टर्ड डॉक्टर की फोटो मिली जो अस्पताल में मौजूद व्यक्ति से मेल नहीं खाती। जब उस व्यक्ति से पूछताछ की तो उसने अपना नाम ब्रजराज सिंह उइके बताया जोकि पेंटर है। उसने बताया कि असली डॉक्टर का नाम सत्येंद्र है, जो फर्जी दस्तावेजों के सहारे डॉक्टर बना। वह सत्येंद्र का परिचित है। इस मामले में एफआईआर दर्ज़ करके पुलिस पूरे मामले की जांच कर रही है। मार्बल सिटी हॉस्पिटल मैनेजमेंट ने अपनी सफाई पेश करते हुए अखबारों में विज्ञापन के जरिए स्पष्टीकरण दिया है कि किस तरह डॉ ब्रजराज सिंह उइके ने अपने सभी दस्तावेज, मार्कशीट सबमिट की थीं।
एक्सपर्ट की राय,,
मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए सभी दस्तावेजों का मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम लेने वाली संस्था वेरिफिकेशन करती है उसके बाद मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के वक्त भी वेरिफिकेशन होता है। इस मामले में किस स्तर पर चूक हुई यह जांच का विषय है।
डॉ पुष्पराज सिंह बघेल
कुलसचिव मेडिकल यूनिवर्सिटी

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