
जबलपुर। श्रावण का द्वितीय सोमवार मप्र की संस्कारधानी में शिवाराधना का सबसे बड़ा दिन है क्योंकि इसी दिन अपने अनूठे परिवेश में दादागुरु के सानिध्य औऱ मार्गदर्शन में निकलती है गोल्डन बुक ऑफ वर्ड रिकार्ड में दर्ज विश्व की एकमात्र प्रकृति संरक्षण की जीवंत अभिव्यक्ति संस्कार कावड़ यात्रा जिसे दादागुरु ने नाम दिया है “रन फ़ॉर नेचर” जिसमें लाखों कावड़िए शिव आराधना के साथ प्रकृति संरक्षण के लिए निकलते हैं। यह कहना है संस्कार कांवड़ यात्रा समिति के संयोजक शिव यादव वा डॉ स्मिता अपराजिता का।
अनूठी है यह यात्रा
संस्कार कांवड़ यात्रा के संयोजक शिव यादव का कहना है कि यह यात्रा अनूठी इसलिए है क्योंकि इससे दादागुरु के प्रकृति संरक्षण सम्वर्धन के विचार को मौलिक रूप प्रदान हुआ है।
इस महायात्रा के साथ देववृक्ष के रूप में दादागुरु का महाविचार भी चलता है। यही विचार हमारे सुखद भविष्य का आधार भी है।
दादागुरु ने समाज को प्रकृति से सहज सन्धि करवाने के लिए हमारे अनेकों पर्व परम्पराओं को सीधा प्रकृति से जोड़ा है कावड़ यात्रा उन्हीं में से एक है ।
दादा गुरु का संदेश
दादागुरु ने अपने सन्देश में कहा है कि कावड़ माता- पिता के प्रति प्रेम श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है। जिस तरह त्रेता युग में श्रवण कुमार अपने माता पिता को कावड़ में लेकर गंगास्नान के लिये निकले थे उसी तर्ज पर कावड़िए कावड़ में एक तरफ माँ स्वरूप जगतनन्दी माँ नर्मदा का अमृतरूपी जल ओर दूसरी तरफ पितृ स्वरूप महादेव के सगुण स्वरूप देववृक्ष को स्थापित कर शिव उपासना के निकलते हैं।
दादागुरु के आदर्श चिंतन को आत्मसात कर संस्कार यात्रा के लाखों कावड़िए एकता, एकाग्रता, समता औऱ शुचिता के साथ सौहाद्रपूर्ण वातावरण बनाए रखते हुए ग्वारी घाट से जल व देववृक्ष को कावड़ में रखते हैं फिर 35 किमी पदयात्रा कर शिव अभिषेक के लिए कैलाशधाम तक जाते हैं।
श्रावण में श्रवण कुमार की तर्ज पर कावड़िए जगतकल्याणि माँ नर्मदा, भगवान भोलेनाथ, की सगुण उपासना के साथ प्रेम,सेवा,एकता,सदभाव के सन्देश का आदर्श स्थापित करते हुए शिव अभिषेक करते हैं ततपश्चात संरक्षण के संकल्प के साथ देववृक्षों की स्थापना करते हैं।यह एक आदर्श पहल है।
– यह यात्रा राष्ट्र-धर्म-
संस्कृति-प्रकृति के प्रति पूर्ण समर्पित महाअभियान है
– यह यात्रा सगुण उपासना, सेवा का महायोग है।
* यह यात्रा धर्म धरा,संस्कृति व प्रकृति बचाने की मुहिम है।
* यह यात्रा महायज्ञ है सम्पूर्ण सृष्टि के प्रति,राष्ट्र के प्रति ,धर्म के प्रति,हमारे पूर्ण समर्पण का जो समतुल्य है सहस्त्र कोटि यज्ञ के।
महाअभियान का सुखद परिणाम
इस महायज्ञ,महाअभियान, महायोग के सुखद परिणाम सम्पूर्ण नर्मदा पट्टी में अनन्त स्थानों पर बड़े बड़े वृक्षो के रूप में लहलहा रहे हैं।
कभी संस्कारधानी में बंजर कही जाने वाली ड्राई पहाड़ी आज हरे भरे सघन वृक्षों से आच्छादित होकर मेघों को आमंत्रण दे रही है। जो असम्भव जान पड़ता था वो भी संकल्प की सिद्धि से पूर्ण हुआ।
श्रावण के द्वितीय सोमवार को कांवड़ यात्रा
इस यात्रा में श्रावण के द्वितीय सोमवार को संस्कारधानी बोल बम के जयकारों से गुंजायमान हो जाती है । हरियाली ओढे बारिश की बूंदों से आल्हादित धरा औऱ सम्पूर्ण परिवेश इस दिव्य वातावरण में शिवमय हो जाता है। कावड़ यात्रा के आलौकिक दृश्य को देखने के लिए सारा शहर उमड़ पड़ता है जगह जगह इस विराट यात्रा का भव्य स्वागत किया जाता है।
संस्कार कावड़ यात्रा मप्र का गौरव है क्योंकि शिव उपासना के साथ शिवस्वरूप वृक्षों की स्थापना कर उनका पालन पोषण कर कावड़ियों ने सच्चे मानव धर्म का आदर्श स्थापित किया है। दादागुरु के इस जीवंत अभिव्यक्ति के फलस्वरूप अभी तक जितने भी वृक्ष संकल्प के साथ रोपे गए हैं वे सभी लहरा रहे हैं। हर वर्ष कावड़ यात्रा के समापन पर शिव अभिषेक के बाद दादागुरु के सानिध्य में देववृक्ष मूर्तियों की स्थापना यथास्थान अविराम होती है।
दादागुरु का संदेश है कि महागुरु प्रकृति हमारी मां है जिसने हमें सहजता और धैर्यता का पाठ पढ़ाया है सहअस्तित्व औऱ आक्रमकता का बोध कराया है तथा संतुलन की अनिवार्यता को समझाया है तो यदि प्रकृति से सन्धि कर ली तो समझना कि तुमने सर्वदेवाराधना कर ली क्योंकि तात्कालिक परिस्थितियों में देव आराधना प्रकृति उपासना के बिना सम्भव नहीं है। धरा औऱ प्रकृति दोनों का जीवन वृक्ष हैं ।औऱ वृक्ष ही शिव शक्ति का साकार रूप है।अर्थात वृक्ष ही प्रत्यक्ष देवता है।
आप आमंत्रित हैं
तो आइए इस महायज्ञ में सहभागी होकर हम भी अपनी आस्था की आहुतियाँ समर्पित करें। तथा शिवाराधना के साथ साथ राष्ट्र आराधना का धर्म भी निभाएं। क्योंकि सौम्य भी शिव है,सत्य भी शिव है
श्रावण का तो सार ही शिव है
प्रकृति माँ के कंठहारों में
वृक्ष रूप साकार ही शिव है।
जय ॐ जय ॐ जय ॐ माँ
(फोटो: संस्कार कांवड़ यात्रा 2024 )