मोहर्रम का समापन: बारिश भी नहीं रोक पाई ‘मोहब्बतें हुसैन’ का सैलाब, कौमी एकता का अनूठा संगम

जबलपुर। पैगंबर ए इस्लाम हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के नवासे हजरत इमाम हुसैन अली मुकाम की शहादत का पर्व मोहर्रम रविवार को धार्मिक उत्साह और सांप्रदायिक सद्भाव के अनूठे प्रदर्शन के साथ संपन्न हो गया। रानीताल कर्बला में ताजिये और सवारियां ठंडी की गईं, “या हुसैन” के नारों से पूरा शहर गूंज उठा। प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी मोहर्रम के जुलूस में हिंदू और मुस्लिम मुजावर दोनों की सवारियां शामिल हुईं, जो कौमी एकता की मिसाल पेश करती हैं।
मोहर्रम के दौरान, मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ बड़ी संख्या में हिंदुओं ने भी अकीदत के साथ सवारियां रखीं, लंगर बांटा और सजावट में सहयोग किया। शासन-प्रशासन द्वारा भी कानून व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किए गए, जिसमें संवेदनशील और मुख्य मार्गों पर अस्थायी पुलिस चौकियां स्थापित की गईं।

भारी बारिश के बावजूद निकला जुलूस

दोपहर में हुई भारी बारिश के कारण जुलूस अपने निर्धारित समय से देरी से निकला, लेकिन शाम 5 बजे से लगातार जारी बारिश के बावजूद अकीदतमंदों की अकीदत और मोहब्बत कम नहीं हुई। बारिश के पानी में भीगते हुए भी जुलूस में इस वर्ष लगभग 250 से अधिक सवारियां और 50 छोटे-बड़े ताजिये शामिल हुए। बड़ी संख्या में वाहनों द्वारा लंगर ए इमाम अली मुकाम का वितरण किया गया।
मुस्लिम बहुल क्षेत्रों से निकला जुलूस बहोरा बाग, चार खंबा, मछली मार्केट, मिलोनीगंज, कोतवाली, कमानिया, बड़ा फुहारा होते हुए रानीताल कर्बला पहुंचा। जुलूस मार्ग पर खड़े जायरीनों ने नम आंखों से ताजिये और सवारियों की जियारत की और उन्हें विदाई दी।

कलात्मक ताजिये और सवारियां बनीं आकर्षण का केंद्र

मोहर्रम के जुलूस में कई भव्य और आकर्षक ताजिये शामिल हुए। हजरत सूफी गुल बाबा अशरफी द्वारा कायम मन्नत वाला ताजिया, नई बस्ती लंगर कमेटी का ताजिया, और सालार मस्जिद के पास वाला ताजिया विशेष रूप से जनआकर्षण का केंद्र रहे।कंधों पर ताजिया रखे अकीदतमंदों का हुजूम “या अली”, “या हुसैन” के नारे बुलंद कर रहा था। अकीदतमंद अपने बच्चों को ताजिया के नीचे से निकाल रहे थे, इस विश्वास के साथ कि उन पर इमाम अली मुकाम की नजरे करम बनी रहे। जुलूस में विभिन्न आकार प्रकार की सवारियां शामिल थीं। बाबा साहब की आमद पर भारी भीड़ उमड़ी। हाथ में मोरछल लहराते हुए चल रहे बाबा साहब के पास अकीदतमंदों की भीड़ लगी थी। अनेक सवारियों पर चांदी के छत्र लगे थे, और मखानों से निर्मित सवारियां विशालकाय थीं। हरे, नीले और लाल मखमल पर मोतियों की नक्काशी जगमगा रही थी।

लंगर बांटने वाले वाहनों की रही बड़ी संख्या

मुहर्रम के जुलूस में काफी तादाद में लंगर बांटने वाले वाहन भी शामिल हुए। सवारी और ताजिये का जुलूस रानीताल कर्बला की तरफ बढ़ रहा था, जबकि लंगर बांटने वाले वाहन रानीताल ईदगाह की तरफ प्रस्थान गये।

सदर और गढ़ा में भी रहा भव्य आयोजन

सदर में जुलूस शाम 5 बजे निकला। इसमें गली नंबर 9 का ताजिया, पुराना ताजिया, और गली नंबर 7 में मरहूम अल्लू बाबा की नाले हैदर की सवारी जनआकर्षण का केंद्र रही। जुलूस का नेतृत्व समाजसेवी मोहम्मद अकबर खान सरवर अशफाक, सिकंदर बाबा, लाल चंदू कुरैशी, साजिद बरकत अहमद और अफजल बाबा ने किया। समाजसेवी अकबर खान सरवर के अनुसार, इस वर्ष 40 से अधिक सवारियां और 7 ताजिये शामिल हुए। अपने परंपरागत तरीके से मुख्य मार्गों से होता हुआ जुलूस रानीताल कर्बला पहुंचा।
उपनगरीय क्षेत्र गढ़ा का जुलूस अपनी परंपरानुसार शाम को निकाला गया।

शहर में कौमी एकता की पहचान रखने वाले गढ़ा में, समाजसेवी मुबारक कादरी के अनुसार, 40 से अधिक हिंदू-मुस्लिम मुजावरों की सवारियां और 10 ताजिये शामिल हुए। गढ़ा के जुलूस में डॉ. सैयद मकबूल अली कादरी, सूफी निजाम बाबा, खलीफा मुमताज मंसूरी, और दादा दरबार की सवारियां जनआकर्षण का केंद्र रहीं। गढ़ा के जुलूस मार्ग पर अनेक हिंदू धर्मावलंबियों द्वारा लंगर बांटा गया और बाबा साहब का इस्तकबाल किया गया। गढ़ा बाजार कौमी एकता मुर्तजा कमेटी के मुईन उस्मानी द्वारा प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी जुलूस का इस्तकबाल किया गया। गढ़ा बाजार, त्रिपुरी चौक होते हुए जुलूस सुपाताल कर्बला पहुंचा। सूपाताल कर्बला में सैय्यद कादिर अली कादरी वासित कादरी, इनायत कादरी, और जवाहर कादरी ने जुलूस के समापन पर इमाम अली मुकाम की बारगाह में सलातो सलाम पेश किया।

शिया समुदाय- यौम-ए-आशूरा (दसवीं मोहर्रम) के अवसर पर हज़रत इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की कर्बला में हुई शहादत को श्रद्धापूर्वक याद किया। इस दौरान विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया, जिसमें इमाम हुसैन के सत्य और न्याय के संदेश को जन-जन तक पहुँचाने और भ्रष्टाचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाने पर विशेष ज़ोर दिया गया। भारी बारिश के बावजूद भी अकीदतमंदों के जज़्बे में कोई कमी नहीं आई और उन्होंने पूरे जोश के साथ मातम किया।

सुबह से ही धार्मिक कार्यक्रमों का सिलसिला शुरू हो गया। सुबह 7 बजे मस्जिद ज़ाकिर अली में अशूरा के हवाले से विशेष इबादत की गई, जिसके बाद सुबह 8 बजे शिया इमामबाड़े में एक मजलिस का आयोजन हुआ। मजलिस के उपरांत एक विशाल अलम जुलूस निकाला गया, जिसमें बड़ी संख्या में शिया समुदाय के लोग शामिल हुए। जुलूस अपने पारंपरिक मार्ग, फूटाताल, खटीक मोहल्ला, सुनहरई होते हुए कोतवाली थाने के सामने पहुँचा।

कोतवाली थाने के सामने लखनऊ से आए मौलाना ज़ाबिर अंसारी साहब ने उपस्थित जनसमूह को संबोधित किया। उन्होंने यज़ीदी ज़ुल्म के मुकाबले हज़रत इमाम हुसैन के सत्य और इंसाफ के शस्त्र से मुकाबले की दास्तान बयान की। मौलाना अंसारी ने नौजवानों से आह्वान किया कि वे दुनियावी शिक्षा के साथ-साथ मज़हबी शिक्षा भी हासिल करें। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि धार्मिक शिक्षा प्राप्त इंजीनियर, डॉक्टर या प्रशासनिक अधिकारी कभी भ्रष्ट नहीं हो सकता, क्योंकि ऐसे व्यक्तियों के आचरण में कोमलता और जनता की भलाई के संस्कार रहेंगे। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार देश के विकास में बाधक है, और हर हुसैनी का यह कर्तव्य है कि वह भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और और आतंकवाद से मुकाबला करे, न कि खुद रिश्वतखोर और भ्रष्टाचारी बने। उन्होंने इमाम हुसैन की तालीम को आम जन तक पहुँचाने पर भी ज़ोर दिया।

भारी बारिश भी नहीं डिगा पाई अकीदतमंदों का जज़्बा

मोहर्रम जुलूस के दौरान लगातार हो रही तेज़ बारिश भी अकीदतमंदों के जज़्बे को कम नहीं कर पाई। मूसलाधार बारिश के बावजूद शिया नौजवानों ने इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में दर्दनाक मातम किया। बारिश के पानी में लथपथ होने के बावजूद, शिया बंधु अपने पारंपरिक लिबास में सड़कों पर डटे रहे। हाथों में अलम और ज़ंजीरें लिए, वे लगातार ‘या हुसैन’ और ‘या अब्बास’ की सदाएं बुलंद करते रहे। नौजवानों ने सीना-कूबी (छाती पीटना) और ज़ंजीर-ज़नी (ज़ंजीरों से मातम करना) जैसे दर्दनाक मातम जारी रखे, जिसमें बारिश की बूँदों के साथ उनके आँसू भी घुल-मिल गए, जिसने इस मंजर को और भी गमगीन बना दिया।
तक़रीर के पश्चात जुलूस आगे बढ़ा। जुलूस में शुजाअत रिज़वी, समसुल, काज़िम, फैजान, एजाज़, सुज्जू नक़वी और भुट्टू ने नौहे पढ़े, जिस पर शिया बंधुओं ने मातम किया।
यह जुलूस बड़ा फुहारा, बलदेवबाग, आगा चौक होते हुए दोपहर 2 बजे रानीताल कर्बला में समाप्त हुआ। रात्रि 8 बजे शिया इमामबाड़े गलगाला में शाम-ए-ग़रीबा की मजलिस का आयोजन किया गया। संस्था सचिव श्री अफ़सर हुसैन नक़वी “फौजू” ने कार्यक्रम के सफल आयोजन में प्रशासनिक सहयोग के लिए आभार व्यक्त किया।

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