
रोम/इटली। क्या खंडहर केवल टूटी दीवारें हैं? या फिर वे इतिहास की उन कहानियों के गवाह हैं, जो किताबों में भी पूरी नहीं हो पातीं। हाल ही में अयोध्या और रोम की यात्रा ने इस प्रश्न का उत्तर कुछ खास अंदाज़ में दिया।
अयोध्या की गलियों में खड़े सैकड़ों साल पुराने भवनों के अवशेष आज भी गौरवशाली इतिहास की झलक देते हैं। पतली ईंटों से बनीं मोटी दीवारें-जिनमें गुड़, उड़द की दाल और चूने से की गई जुड़ाई-आज भी मजबूती से खड़ी हैं। हर दीवार मानो किसी राजा, संत या साधु की स्मृति संजोए हुए है।
वहीं रोम का कोलोसियम करीब 2000 साल पुराना स्टेडियम अब भी लोगों को आकर्षित करता है। यह वही स्थान है जहां कभी 50,000 दर्शक ग्लेडिएटरों की लड़ाइयां देखा करते थे। मिस्र से लाए गए भारी पत्थरों से बनी इसकी संरचना, बिना आधुनिक मशीनों के बनी वास्तुशिल्पीय उपलब्धि है। इतिहासकारों के अनुसार, उस समय रोमन इंजीनियर कंक्रीट मिक्सर जैसी तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे थे जो उस युग के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था।
कोलोसियम केवल एक स्थापत्य नहीं, बल्कि एक जीवित दस्तावेज़ है। इसकी दीवारें आज भी उन लड़ाइयों की गूँज अपने भीतर समेटे हुए हैं, जिनमें कभी स्वतंत्रता की आशा लिए कैदी शेरों से भिड़ते थे।
हर दिन हजारों लोग टिकट लेकर इस खंडहर को देखने आते हैं। यह प्रमाण है कि खंडहर केवल पत्थरों का ढेर नहीं, बल्कि इतिहास की चेतना हैं जो देखने वाले को समय के पार ले जाती है।
जैसा कि राकेश सुहाने ने कलमबद्ध किया।