Madan Mahal Fort: प्रशासन और सैन्य गतिविधियों का केंद्र रहा मदनमहल किला

जबलपुर। मध्यप्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर ऐतिहासिक धरोहरों और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जानी जाती है। इन्हीं धरोहरों में से मदनमहल पहाड़ी का किला भी एक है। यह गोंडवाना साम्राज्य की वीरांगना रानी दुर्गावती की शौर्यगाथा का प्रतीक है।
मदनमहल पहाड़ी पर बना है किला
यह किला मदन महल क्षेत्र में पहाड़ी पर बना हुआ है। इसे 11वीं सदी में राजा मदन सिंह ने बनवाया था, लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व रानी दुर्गावती के शासन काल 1542-1564 ई से जुड़ा हुआ है। रानी दुर्गावती ने इस किले को अपनी प्रशासनिक और सैन्य गतिविधियों का केंद्र बनाया था। यह किला रणनीतिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि यह ऊंचाई पर स्थित होने के कारण दूर-दराज तक दुश्मनों की गतिविधियों पर नजर रखने की सुविधा देता था
रानी दुर्गावती महान महिला योद्धा
भारतीय इतिहास की महान महिला योद्धाओं में रानी दुर्गावती का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है। उन्होंने अकबर के सेनापति आसफ खान की विशाल सेना से वीरता से युद्ध किया था। भले ही उनकी सेना छोटी थी, लेकिन उनके साहस, नेतृत्व और युद्ध कौशल ने गोंडवाना की भूमि को अमर बना दिया। उन्होंने 24 जून 1564 को वीरगति प्राप्त की, लेकिन आत्मसमर्पण नहीं किया। उनकी यही बलिदान गाथा जबलपुर और सम्पूर्ण भारत को आज भी गर्व से भर देती है।
इतिहास प्रेमी और पर्यटकों को आकर्षित करता है किला
मदन महल किला आज भी इतिहास प्रेमियों और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। किले में मौजूद गुप्त सुरंगें, घोड़े बांधने की जगह, हथियार रखने के कमरे और ऊंचाई से दिखता जबलपुर शहर, यह सब इतिहास को जीवंत अनुभव कराने का माध्यम बन चुके हैं। यहां से सूर्यास्त का दृश्य भी अत्यंत मनोहारी होता है।
समय-समय पर होता है संरक्षण
पर्यटन की दृष्टि से यह स्थल बेहद महत्वपूर्ण है। प्रशासन द्वारा यहां समय-समय पर संरक्षण और विकास कार्य किए जा रहे हैं। इसके साथ ही, रानी दुर्गावती की वीरता को नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए विद्यालयों और महाविद्यालयों में विभिन्न कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं।
रानी दुर्गावती किला न सिर्फ एक ऐतिहासिक स्थल है, बल्कि यह स्त्री शक्ति, आत्मबलिदान और मातृभूमि प्रेम का जीवंत प्रतीक भी है। यह किला हमें यह सिखाता है कि किसी भी परिस्थिति में आत्मसम्मान और देश की रक्षा सर्वोपरि होती है।
ऐसे स्थलों का संरक्षण और प्रचार-प्रसार, हमारी सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों को उनके गौरवशाली अतीत से जोड़ने का कार्य करता है। जबलपुर का यह किला सिर्फ पत्थरों की दीवार नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास की एक अमिट छवि है।

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