नागपंचमी 2025 पर बन रहा शिव योग: जानें पूजा का महत्व और मध्य प्रदेश के प्राचीन नाग मंदिर

नागपंचमी पर नागों की पूजा से पितृ दोष और कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है

रवीन्‍द्र सुहाने

जबलपुर। सावन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर मनाई जाने वाली नागपंचमी इस बार 29 जुलाई को है। खास बात यह है कि इस वर्ष नागपंचमी पर तीन वर्षों बाद पुनः शिव योग बन रहा है। इस दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र और गजकेसरी, रवि, सिद्ध व धाता योग भी रहेंगे, जिससे यह पर्व और अधिक फलदायी बन गया है।

शिव योग में नाग पूजा का विशेष महत्व

आचार्य सौरभ उपाध्‍याय ने बताया कि मान्यता है कि नागपंचमी पर नागों की पूजा से पितृ दोष और कालसर्प दोष जैसी परेशानियों से मुक्ति मिलती है। इस बार शिव योग भी बनने के कारण यह पर्व और अधिक प्रभावी माना जा रहा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव के गले में विराजमान नागराज की पूजा शिव योग में करने से विशेष पुण्य फल प्राप्त होता है। इससे पूर्व ऐसा संयोग 2022 और उससे पहले 2017 में बना था।

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काशी के नागकुआं में होता है विशेष पूजन

उत्तर भारत की प्रसिद्ध नाग पूजा स्थली, काशी के नागकुआं (जैतपुरा) में इस दिन मेला लगता है। यहां की मान्यता है कि तक्षक नाग संस्कृत की शिक्षा लेने बालक रूप में आए थे, जहां गरुड़ ने उन पर हमला किया, लेकिन गुरु के प्रभाव से तक्षक को अभयदान मिल गया। इसी कथा के चलते यहां नागपंचमी पर विशेष पूजन और मेले का आयोजन होता है।

मध्य प्रदेश के प्रमुख नाग मंदिर

मध्य प्रदेश में भी नागपंचमी को लेकर विशेष धार्मिक उत्साह देखने को मिलता है। प्रदेश के कई प्रमुख मंदिरों में विशेष पूजन और श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है:

  • नागचंद्रेश्वर मंदिर, उज्जैन: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर परिसर में नागचंद्रेश्वर मंदिर स्थापित है। नाग देवता की प्रतिमा 11वीं शताब्दी की बताई जाती है। यह दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर हैं, जहां भगवान शिव सर्प शय्या पर विराजमान हैं। इस अद्भुत प्रतिमा में नाग देवता ने अपने फन फैलाए हुए हैं और उसने ऊपर भगवान शिव, माता पार्वती समेत विराजमान हैं। यह मंदिर साल भर में केवल नागपंचमी पर 24 घंटे के लिए ही खुलता है।
  • नागद्वार मंदिर, पचमढ़ी: मध्य प्रदेश में सतपुड़ा की पहाड़ियों में मौजूद नागद्वार मंदिर एक ऐसा स्थान है, जिसे मध्य प्रदेश का अमरनाथ कहते हैं। ऐसी मान्‍यता है कि यहां खुद भगवान नाग विराजमान हैं। नागद्वार मंदिर केवल 10 दिन के लिए खुलता है। सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीच श्रद्धालुओं को करीब 14 किमी पैदल जाना पड़ता है। करीब 7 दुर्गम पहाड़ियों की यात्रा करके भक्त नागद्वार मंदिर तक पहुंचते हैं।
  • नाग मंदिर जबलपुर: जबलपुर के गौरीघाट पर नाग मंदिर स्थित है। यह मंदिर नागों को समर्पित है और नाग पंचमी के दिन यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। यह मंदिर नर्मदा नदी के किनारे स्थित है और अपनी शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। इसके अलावा शहर व आसपास के अनेक स्‍थान है, जहां नागदेव का पूजन होता है।
  • बड़वानी, राजगढ़, छतरपुर व रीवा सहित अन्‍य जिलों में भी कई स्थानों पर नाग देवता के प्राचीन मंदिर हैं, जहां परंपरागत रूप से पूजा की जाती है और मेलों का आयोजन होता है।

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नागपंचमी पर पूजन विधि और लाभ

इस दिन नागदेवता की प्रतिमा या चित्र पर दूध, पुष्प, कुशा, अक्षत और दूर्वा अर्पित कर पूजा की जाती है। विशेषकर शिवलिंग पर नाग का प्रतीक बनाकर जल अर्पण करने से सौभाग्य, स्वास्थ्य और संतान सुख की प्राप्ति होती है। इस बार के विशेष योग इसे और अधिक फलदायक बना रहे हैं।

आचार्य सौरभ शास्‍त्री के अनुसार, इस दिन दान करने और रुद्राभिषेक जैसे कर्म करने से समस्त प्रकार के दोषों की शांति होती है।

नागपंचमी का यह पर्व न केवल सांपों की पूजा के रूप में देखा जाता है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण और जीव-जंतुओं के प्रति संवेदनशीलता का भी प्रतीक है।

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