कांग्रेसियों की विचारधारा में फूल की महक तो नहीं, परखा जाएगा दावेदारों का इतिहास

- कांग्रेस के संगठन सृजन अभियान में पर्यवेक्षकों के लिए बड़ा टास्‍क

राजीव उपाध्याय

कांग्रेस में अपनों ने ही घात दी, वह भी इस तरह की नासूर तक अंदर तक चुभन दे गया। वह चुभन अभी भी उन कांग्रेसियों में है जिनके डीएनए में कांग्रेस है। पिछले कुछ सालों में कांग्रेस काफी हद तक विश्‍वासघात से गुजरी है। खासतौर से मध्‍यप्रदेश कांग्रेस। इसलिए संगठन सृजन अभियान में अब जिनका चयन होगा वह पर्यवेक्षकों के लिए भी कठिन है क्‍योंकि दावेदारों की विचारधारा का इतिहास देखा जा रहा है कि कहीं उनकी विचारधारा में फूल की महक तो नहीं बसी है। सांसद राहुल गांधी ने पर्यवेक्षकों के लिए बड़ा टास्‍क दिया है।

डीएनए पर नहीं विचारधारा पर मंथन

वे जो मूल रूप से कांग्रेस परिवार में पैदा नहीं हुए लेकिन विचारधारा से कांग्रेसी हैं उनका मूल्‍यांकन भी किया जा रहा है। इसके पीछे कारण यह है कि कांग्रेस के निष्‍ठावान पदाधिकारी और कार्यकर्ता मध्‍यप्रदेश में कांग्रेस की उस स्थिति को नहीं भूले हैं कि हाथ में आई हुई सत्‍ता गंवा दी थी।इसके पीछे बड़े नेताओं के ईगो को भी कार्यकर्ता नहीं भूले हैं, जिसके कारण यह वाक्‍या हुआ। वहीं जबलपुर शहर में महापौर पद कांग्रेस ने जीता लेकिन आज बीजेपी के पास महापौर का पद है। यहां भी सत्‍ता हाथ में आई लेकिन कांग्रेस विपक्ष में है।

वहीं संगठन में भी बरसों से खुद को कांग्रेसी कहने वाले वे वरिष्‍ठ नेता जिनको कांग्रेस में हमेशा उच्‍च पद मिला वे भी मौका मिलते ही बीजेपी में चले गए। हालांकि आज वे बीजेपी के किसी भी कार्यक्रम में नजर नहीं आते। उस दौरान घटनाक्रम इस कदर तेजी से हुए थे कि कांग्रेस कार्यकर्ता खुद को ठगा महसूस करने लगे। कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता पीसी शर्मा ने भी भोपाल में मीडिया से कहा था कि कांग्रेस के अंदर रहकर बीजेपी के लिए काम करने वाले या जिसे फूल छाप कांग्रेसी कहते हैं उनको चिन्हित करना जरूरी है।

इसी तरह जबलपुर में जब पूर्व विधानसभा क्षेत्र में एआइसीसी पर्यवेक्षक गुरपीत सिंह सप्‍पल बैठक ले रहे थे तब पूर्व क्षेत्र के विधायक लखन घनघोरिया ने बड़ी बात कही थी कि किसने किसको टिकट दिलाई थी। इसकी बहुत चर्चा हुई क्‍योंकि यहां शहर में पॉवर की बात हो रही थी कि शहर कांग्रेस कौन चला रहा है। कांग्रेस में आज यह भी बड़ी समस्‍या बनी है कि जिनको टिकट दिलाई जाती है वे यदि बीजेपी में चले जाते हैं तो उसकी जिम्‍मेदारी कौन लेगा। इससे कांग्रेस डेमेज हो रही है।

पर्यवेक्षकों की भी परीक्षा

सांसद राहुल गांधी ने संगठन सृजन अभियान को इस तरह बनाया है कि पर्यवेक्षकों का भी पसीना आ रहा है यह उनके लिए भी परीक्षा की घड़ी है। प्‍लान में उन्‍हें बताया गया है कि डिस्ट्रिक प्रेसिडेंट के लिए यह बहुत जरूरी है कि उसकी विचारधारा का सही आकलन हो। इसके लिए उसका इतिहास देखा जाए कि वह अन्‍य पार्टी के विचारों से प्रभावित तो नहीं हुआ है। उसके बयान कांग्रेस की विचारधारा से मेल खाते हैं कि नहीं।

राहुल गांधी ने भोपाल में कहा था कि यदि कोई डिस्ट्रिक्ट प्रेसिडेंट को ओवरलैप करेगा तो उसकी जगह कांग्रेस में नहीं होगी। कांग्रेस में रहकर बीजेपी के लिए काम करने वालों को साइड लाइन करने का प्लान है लेकिन यह हकीकत में तभी संभव होगा जब तथाकथित कुछ नेता इसे इंप्लीमेंट होने देंगे।

पर्यवेक्षकों को टीप लिखना जरूरी

पर्यवेक्षकों को छह नाम की सूची में सामान्‍य, ओबीसी, एससी, एसटी, महिला, अल्‍पसंख्‍यक वर्ग को शामिल किया है। इसमें जिन दावेदारों के नाम चयनित किए हैं उनके नाम के आगे टीप लिखी गई है कि उसका संगठन में क्‍या योगदान रहा है, उसका पॉजिटिव और निगेटिव पक्ष क्‍या है।

Back to top button