ईद-उल-अज़हा: इस्लाम का संदेश मोहब्बत और अमन- मौलाना

जबलपुर। मुस्लिम धर्मावलंबियों का प्रमुख पर्व ईद-उल-अज़हा (बकरीद) शनिवार को जबलपुर में अकीदत और शालीनता के साथ मनाया गया। शहर की विभिन्न ईदगाहों और मस्जिदों में हज़ारों मुस्लिम बंधुओं ने ईदुज्जहा की नमाज अदा की, जहाँ पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए थे ताकि त्योहार शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो सके।
ईदगाह कलां रानीताल मे मुफ़्ती-ए-आज़म मध्य प्रदेश, हज़रत, मौलाना, डाक्टर मुशाहिद रज़ा कादरी साहब स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण तकरीर नहीं कर पाये इसलिए उनकी की इजाजत से मुफ़्ती सैय्यद अब्दुल रहमान मिस्बाही ने विशाल जनसमूह को संबोधित किया। मौलाना साहब ने अपनी तकरीर में फ़रमाया कि पैगम्बरे इस्लाम, हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहै वसल्लम ने इंसानियत को जो सबसे बड़ा दर्श दिया है वह मोहब्बत,अमन, आपसी भाई-चारा है । उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस्लाम का अर्थ ही अमन और शांति है।
मौलाना साहब ने बड़े दुख के साथ कहा कि हमारे बीच के ही कुछ मुसलमानों की जहालत के कारण दूसरे लोग हमें बदनाम करने में लगे हुए हैं। उन्होंने कुरान शरीफ की पहली आयत का उल्लेख करते हुए बताया कि वह पढ़ने और इल्म हासिल करने का आदेश देती है। इसके बावजूद, पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर जान न्योछावर करने का दावा करने वालों की जहालत का आलम यह है कि आज दुनिया में सबसे ज्यादा किसी कौम को जहालत में डूबा हुआ और पिछड़ा हुआ कहा जाता है, तो वह मुस्लिम कौम है।
मौलाना साहब ने आगाह किया कि अगर कोई कौम गलतियाँ करती जाती है और अपनी नाकामियों को दूर नहीं करती, अपनी कामयाबी की ओर नहीं जाती, और अपनी सोसाइटी का कल्चर अपने मजहब के मुताबिक अपनी जिंदगी गुजार-बसर नहीं करती, तो वह कौम तबाह और बर्बाद हो जाती है।
उन्होंने पिछली सदियों का उदाहरण देते हुए कहा कि हमारे एक हाथ में कुरान शरीफ होती थी और दूसरी जानिब हम तिजारत किया करते थे। यही वजह थी कि बड़े से बड़े बादशाहों की औलादें हमारे पास इल्म हासिल करने के लिए लाइन लगाकर खड़ी रहती थीं।
लेकिन आज के समय में, मौलाना साहब ने कहा कि सबसे पिछड़े हम हैं, सबसे ज्यादा बदअख़लाकी हमारी कौम में है, और दुनिया अगर किसी कौम को कमजोर कह रही है या दुनिया खौफजदा है, तो वह मुस्लिम कौम है।
मौलाना साहब ने इस गिरावट पर सवाल उठाया कि आखिर ऐसा क्यों है? उन्होंने बताया कि हमारे आका (पैगम्बर हज़रत मोहम्मद साहब ) ने अपनी जिंदगी में जिस चीज पर सबसे ज्यादा जोर दिया है, वह इल्म है। हमारे आका सहाबा इकराम की एक ऐसी पढ़ी-लिखी जमात छोड़ते हैं, जो सारी दुनिया में फैलकर अपने मजहब का काम भी करती है और सारी दुनिया के सामने अपना किरदार पेश कर सारी दुनिया को अपना आशिक बना लेती है।
उन्होंने पूछा कि आखिर इस दौर में क्या कमी हुई है, क्या वजह हुई है कि हम इस मोड़ पर खड़े हैं? मौलाना साहब ने जोर दिया कि हमें अपना जायजा लेना होगा।
उन्होंने अंत में स्पष्ट किया कि इस्लाम कभी भी दुनियावी इल्म की मुखालफत (विरोध) नहीं करता है। इस्लाम कभी नहीं कहता कि आलिम बनें पर साइंटिस्ट न बनें या डॉक्टर, एडवोकेट, जज न बनें। इस्लाम सिर्फ एक पाबंदी लगाता है कि आपको पहले इल्मे दीन इतना हासिल जरूर करना है कि जिससे आप अपने अकीदे को और अपने अमल को संभाल सकें
तकरीर के बाद, मुफ्ती सैय्यद अब्दुल रहमान मिस्बाही ने ही ईद-उल-अज़हा की नमाज अदा कराई। “अल्लाह-हू-अकबर” की गूंज के साथ हज़ारों सिर एक साथ सजदे में झुके, अल्लाह की बंदगी के प्रति समर्पण का अद्भुत नजारा था। नमाज़ के बाद ईद-उल-अज़हा का खुत्बा पढ़ा गया, और अंत में मुफ़्ती-ए-आज़म ए आजम मध्यप्रदेश ने कर्नल सूफिया कुरैशी सहित देश के सभी सैनिकों और बेटियों की हिफाजत के लिए खास दुआएँ की गईं। देश की तरक्की और खुशहाली के लिए विशेष दुआएं मांगीं।
मुस्लिम समाज ने जताया आभार
ईदुज्जुहा का पर्व आपसी भाईचारा एवं शालीनता के सम्पन्न होने पर मुस्लिम समाज के वरिष्ठ समाजसेवी हाजी कदीर सोनी, हाजी मकबूल अहमद रज़वी, हाजी शेख जमील नियाजी, पप्पू वसीम खान, मतीन अंसारी, हाजी मुईन खान, जमा खान, बाबा रिजवान, अमीन कुरैशी, प्यारे साहब, मुबारक कादरी, सैयद कादिर अली कादरी, हाजी तौसीफ रजा, अकबर खान सरवर, याकूब अंसारी, नियाज मंसूरी, हाजी हामिद मंसूरी, शमीम अंसारी गुड्डू, अशरफ मंसूरी, शाकिर कुरैशी, सैयद शौकत अली, जवाहर कादरी और अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन, के सराहनीय योगदान पर एवं संस्कारधानी वासियों के प्रति आभार व्यक्त किया।
मुबारकबाद और सौहार्द का माहौल
नमाज अदा करने के बाद नमाजियों ने एक-दूसरे के गले मिलकर ईद-उल-अज़हा की मुबारकबाद दी। ईदगाहों के प्रवेश द्वार पर राजनैतिक दलों के कार्यकर्ता, सामाजिक संगठन और वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित रहे, जिन्होंने मौलाना साहब और मुस्लिम बंधुओं से गले मिलकर ईद की शुभकामनाएं दीं। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों की मस्जिदों में भी सुबह से ईद-उल-अज़हा की नमाज अदा की गई, जहाँ उत्साह और भाईचारे का माहौल देखने को मिला।
कुर्बानी: ईद-उल-अज़हा के मौके पर पर सक्षम मुस्लिमों ने सुन्नते इब्राहिम की याद में बकरों की कुर्बानी पेश की। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में दिन भर चहल-पहल बनी रही और हर्षोल्लास व खुशी का माहौल छाया रहा। बच्चों के साथ बड़ों ने भी बस्तियों में लगे झूलों का आनंद लिया। रात्रि में दावतों का सिलसिला देर रात तक जारी रहा, जहाँ लोग एक-दूसरे के घर जाकर मुबारकबाद पेश करते रहे।

मोमिन ईदगाह गोहलपुर: सुबह 8 बजे हाफिज मोहम्मद ताहिर साहब ने नमाज अदा कराई। नमाजियों की विशाल संख्या को देखते हुए ईदगाह के सामने मुख्य सड़क और उर्दू स्कूल के मैदान तक लंबी कतारें लगी थीं।

ईदगाह सदर: सदर बाजार ईदगाह में सुबह 9 बजे मौलाना जियाउर रजा चांद कादरी ने नमाज अदा कराई। यहां सुरक्षा संस्थानों, सेना इकाइयों में सेवारत मुस्लिम अधिकारी-कर्मचारियों और रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में अध्ययनरत मुस्लिम छात्रों ने भी नमाज पढ़ी।

गढ़ा ईदगाह: उपनगरीय क्षेत्र गढ़ा ईदगाह में क्षेत्रीय लोगों के साथ-साथ नेताजी सुभाषचंद्र बोस शासकीय मेडिकल कॉलेज में सेवारत मुस्लिम कर्मचारियों और अध्ययनरत छात्राओं ने भी नमाज अदा की। हाफिज कारी मौलाना अमीर अशरफ ने सुबह 10 बजे नमाज कराई।
शिया जामा मस्जिद: फूटाताल स्थित शिया जामा मस्जिद जाकिर अली में सुबह 10 बजे मौलाना सैयद हैदर मेंहदी साहब ने ईद-उल-अज़हा की नमाज अदा कराई।

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