चातुर्मास 2025: 6 जुलाई से मांगलिक कार्यों पर ब्रेक, चार माह सृष्टि का कार्यभार संभालेंगे भोलेनाथ

चातुर्मास के 4 महीने पूजा-पाठ के लिए विशेष

हिंदू धर्म में चातुर्मास को चौमासा के नाम भी जाना जाता है। चातुर्मास के दौरान कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य करना पूर्ण रूप से वर्जित होता है। ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ दुबे के अनुसार चातुर्मास का समय पूरे चार महीने का होता है, जो कि जल्द ही शुरू होने वाला है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चातुर्मास के 4 महीने पूजा-पाठ करने के लिए बहुत विशेष होते हैं। ऐसा माना जाता है कि चातुर्मास में भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं और चार महीने बाद निद्रा योग से बाहर आते हैं। आइए जानते हैं कि चातुर्मास में क्या-क्या नहीं करना चाहिए। पंचांग के अनुसार, इस साल 2025 में चातुर्मास 6 जुलाई से शुरू होगा और 1 नवंबर को चातुर्मास की समाप्ति होगी।

2 नवंबर से मांगलिक और शुभ कार्यों की शुरुआत

चातुर्मास देवशयनी एकादशी से शुरू होता है और देवउठनी एकादशी पर खत्म होता है। ऐसे में 2 नवंबर को तुलसी विवाह के दिन से सभी मांगलिक और शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाएगी।

ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ दुबे ने बताया कि चातुर्मास एक विशेष अवधि है, जो 4 माह की होती है। यह हर साल आषाढ़ शुक्ल एकादशी (देवशयनी एकादशी) से शुरू होकर कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी (प्रबोधनी एकादशी ) तक रहती है। कहा जाता है इस दौरान भगवान विष्णु योगनिद्रा में होते हैं और सृष्टि का सारा कार्यभार भोलेनाथ संभालते हैं। ऐसे में पूरे चार 4 माह तक कोई मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। आखिर क्यों सृष्टि के पालनहार श्री हरि चार महीने के लिए विश्राम करते हैं?

निद्रा ने की थी प्रार्थना

एक बार भगवान विष्णु जी से निद्रा ने प्रार्थना की हे भगवन आपने सभी को अपने शरीर में कुछ न कुछ स्थान दिया है, लेकिन मुझे नहीं दिया है इसलिए आपसे प्रार्थना है कि देव मुझे भी कोई स्थान प्रदान करें।

योगनिद्रा का वरदान

भगवान विष्णु ने निद्रा को वरदान दिया की 4 महीने तक तुम मेरे नेत्रों में योग निद्रा के रूप में वास करोगी, उसके बाद से ही भगवान 4 महीने के लिए क्षीर सागर में सोने चले जाते हैं, जिसे योग निद्रा भी कहा जाता है।

चातुर्मास का आध्यात्मिक पक्ष यदि देखा जाए तो सभी मांगलिक कार्य बन्द हो जाते हैं। चातुर्मास पूजा पाठ, मंत्र जाप ,यज्ञ अनुष्ठान , ध्यान, संयमित जीवन शैली के लिए शुभ होता है।

चातुर्मास का शाब्दिक अर्थ है- चार महीने। इस अवधि में श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक मास आते हैं।

जबलपुर के गीताधाम ग्‍वारीघाट में विराजे भगवान पारदेश्‍वर महादेव।
जबलपुर के गीताधाम ग्‍वारीघाट में विराजे भगवान पारदेश्‍वर महादेव।

यह चार महीने भगवान शिव को समर्पित

ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ दुबे के बताया कि इस दौरान चार माह तक सृष्टि का संचालन भगवान शिव के हाथों में रहता है। चार महीने तक सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। यह चार महीने भगवान शिव को समर्पित हैं। इस दौरान भगवान शिव की पूजा आराधना व्रत अनुष्ठान आदि विशेष रूप से किए जाते हैं।

सनातन संस्कृति सनातन धर्म और हिंदू पंचांग में जब सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है तब इसको दक्षिणायन काल की शुरुआत माना जाता है। इस दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित रहते हैं।

सनातन धर्म में कोई भी कार्य यूँ नहीं बताया गया है। हर कार्य के पीछे हजारों वर्षों अध्ययन और चिन्तन कर प्राकृतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक पक्ष को ध्यान में रखते हुए हर बात बताई गई है।

विशेष ग्रह-योगों का संयोग

ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ दुबे ने बताया कि इस वर्ष चातुर्मास के दौरान कई विशेष ग्रह-योगों का संयोग बन रहा है। सर्वार्थसिद्धि योग, अमृत योग के साथ-साथ मिथुन राशि में चतुर्ग्रही योग का भी निर्माण होगा, जिसमें सूर्य, बुध, गुरु और चंद्रमा शामिल होंगे। इन योगों में भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी, भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करना अत्यंत फलदायी माना गया है।

सावन मास की शुरुआत 10 जुलाई से

चातुर्मास के दौरान सावन मास की शुरुआत 10 जुलाई से होगी, जो 9 अगस्त तक चलेगा। सावन सोमवार इस बार 14, 21, 28 जुलाई और 4 अगस्त को होंगे। इस दौरान शिव मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है और व्रत, जलाभिषेक एवं रुद्राभिषेक जैसे अनुष्ठानों का विशेष महत्व रहता है।

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